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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 02

    ( " या जब कभी अन्तः श्वास और बहिर्श्वांस एक दूसरे में विलीन होती हैं , उस क्षण में ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित  केन्द्र को स्पर्श करो . " )

      हम केन्द्र और परिधि में विभाजित हैं . शरीर परिधि है . हम शरीर को , परिधि को जानते हैं . लेकिन हम यह नहीं जानते कि कहाँ केन्द्र है . जब बहिर्श्वांस अन्तःश्वास में विलीन होती है . जब वे एक हो जाती हैं , जब तुम यह नहीं कह सकते कि यह अन्तःश्वास है कि  बहिर्श्वांस , जब यह बताना कठिन हो कि श्वास भीतर जा रही है कि बाहर जा रही है , जब श्वास भीतर प्रवेश कर बाहर की तरफ मुड़ने लगती है , तभी विलय का क्षण है . तब श्वास न बाहर जाती और न भीतर आती है . श्वास गतिहीन है . जब वह  बाहर जाती है , गतिमान है ; जब वह भीतर आती है , गतिमान है . और जब वह दोनों में कुछ भी नहीं करती है , तब वह मौन है , अचल है . और तब तुम केन्द्र के निकट हो . आने वाली और जाने वाली श्वासों का यह विलय-बिंदु तुम्हारा केंद्र है .

       इसे इस तरह देखो . जब श्वास भीतर जाती है तो कहाँ जाती है ? वह तुम्हारे केन्द्र को जाती है . और जब वह बाहर जाती है तो कहाँ से जाती है ? केन्द्र से बाहर जाती है . इसी केन्द्र को स्पर्श करना है . यही कारण है कि ताओवादी संत और झेन संत कहते हैं  कि सर तुम्हारा केन्द्र नहीं है , नाभि तुम्हारा केन्द्र है . श्वास नाभि - केन्द्र को जाती है , फिर वहाँ से लौटती है , फिर-फिर उसकी यात्रा करती है .

          शिव कहते हैं : " जब कभी अन्तः श्वास और बहिर्श्वांस एक दूसरे में विलीन होती हैं , उस क्षण में ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित  केन्द्र को स्पर्श करो . "  

       शिव परस्पर विरोधी शब्दावली का उपयोग करते हैं : ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित . वह ऊर्जारहित है , क्योंकि तुम्हारे शरीर , तुम्हारे मन उसे ऊर्जा नहीं दे सकते . तुम्हारे शरीर की ऊर्जा और मन की ऊर्जा वहाँ नहीं है , इसलिए जहाँ तक तुम्हारे तादात्म्य का संबंध है , वह ऊर्जारहित है . लेकि वह ऊर्जापूरित है , क्योंकि उसे ऊर्जा का जागतिक स्रोत उपलब्ध है .

       तुम्हारे शरीर की ऊर्जा तो ईंधन  है -- पेट्रोल जैसी . तुम कुछ खाते-पीते हो उससे ऊर्जा बनती है . खाना-पीना बंद कर दो और शरीर मृत होजायेगा . तुरंत नहीं , कम से कम तीन महीने लगेंगे , क्योंकि तुम्हारे पास पेट्रोल का एक खजाना भी है . तुमने बहुत ऊर्जा जमा की हुई है , जो कम से कम तीन महीने काम दे सकती है . शरीर चलेगा , उसके पास जमा ऊर्जा थी . और किसी आपातकाल में उसका उपयोग हो सकता है . इसलिए शरीर - ऊर्जा  ईंधन - ऊर्जा है .

       केन्द्र को ईंधन - ऊर्जा नहीं मिलती है . यही कारण है कि शिव उसे ऊर्जारहित कहते हैं . वह तुम्हारे खाने-पीने पर निर्भर नहीं है . वह जागतिक स्रोत से जुड़ा हुआ है , वह जागतिक ऊर्जा है . इसलिए उसे  " ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित केन्द्र " कहतें हैं . जिस क्षण तुम उस केन्द्र को अनुभव करोगे जहाँ से श्वास जाति - आती है , जहाँ श्वास विलीन होती है , उस क्षण तुम आत्मोपलब्ध हुए .

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