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    अपने परचे लागी तारीतारी - ओशो



    अपने परचे लागी तारीतारी - ओशो 

    अपने परचे लागी तारीतारी कवीर का बड़ा प्यारा शब्द है और बड़ा सूक्ष्म । बड़ा अर्थपूर्ण, बड़ा रहस्य से भ रा हुआ। तारी ऐसी नींद का नाम है, जब तुम सोये भी नहीं होते, जागे भी नहीं ह ते, तब तारी लग गई। ऐसा कहते हैं। भीतर तुम जागे भी रहते हो। बाहर तुम स ए भी रहते हो। शरीर विश्राम में होता है, लेकिन चेतना का दिया जलता रहता है । तारी, निद्रा और जागरण के ठीक मध्य की अवस्था है। जहां जागरण है पूरा, और निद्रा का विधाम भी पूरा।

            पतंजलि ने योगसूत्रों में कहा, कि समाधि सुषुप्ति जैसी है, नींद जैसी है, सिर्फ एक फर्क के साथ, कि नींद में बेहोशी है और समाधि में होश है। तारी, कबीर का शब्द है। तारी का मतलब है, जागे भी पूरे, विधाम से भरे भी पूरे । और तारी शब्द में एक तरह की मादकता का भी भाव है। जैसे कोई शराब पी ग या-परमात्मा की शराब! एक गहन नशा छा गया।

            उमर खैयाम की रुबाइयात, कबीर की तारी की पूरी व्याख्या है। जिसमें उमर खैया म मधुशाला की बात करता रहता है वह सूफी ग्रंथ है। और सारे अनुवादों ने उसे भ्रष्ट कर दिया है। पश्चिम में फिटजराल्ड ने उसका अनुवाद किया। फिटराल्ड ने सम झा, कि यह शराब की ही बात है। यह शराब की बात नहीं है। यह तो परमात्मा के नशे की बात है। और उमर खैया म एक सूफी फकीर है, जिसने शराब कभी छई नहीं। लेकिन शब्द भ्रांति में डाल दे ते हैं। फिर फिटजराल्ड के अनुवाद से सारी दुनिया में अनुवाद हुए। और मधुशाला, मधुशाला मालूम होने लगी। पियक्कड़ सच में ही पियक्कड़ मालूम होने लगे। लेकिन बात खो गई। बात कुछ और ही थी।

    ओशो 

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