जागा हुआ आदमी, जागा हुआ आदमी है - ओशो
जागा हुआ आदमी, जागा हुआ आदमी है - ओशो
जैसे दो आदमी सोते हों, एक आदमी अपना देखता हो कि चोर है; और एक आदमी सपना देखता हो, कि साधू है। क्या तुम सोचते हो, उन दोनों में कोई गुणात्मक भेद है? दोनों सो रहे हैं। दोनों सपना देख रहे हैं। दोनों के हाथ में सत्य नहीं है। और एक तीसरा आदमी जागा हुआ पास ही वैठा है। जागा हुआ है, सपना नहीं देख रहा है। इस आदमी उन दो सोए आदमियों में गुणात्मक भेद है। इसकी चेतन-दशा ही अलग है। यह जागा हुआ है। सपने इसे नहीं सताते हैं। क्योंकि सपने तो गहन तंद्रा में ही आते हैं। जब तुम बेहोश होते हो, तव ही सपने तुम्हें आते हैं।
जागे हुए व्यक्ति को वासना नहीं सताती, क्योंकि वासना एक स्वप्न है। जागे हुए व्यक्ति को लोभ नहीं सताता, क्योंकि लोभ एक स्वप्न है। जागे हुए व्यक्ति को पाप नहीं सताता, क्योंकि पाप एक स्वप्न है। और मैं तुमसे कहता हूं, जागे हुए व्यक्ति को पुण्य भी नहीं सताता, क्योंकि पुण्य भी एक स्वप्न है। अशुभ तो सताता ही नहीं, शुभ भी नहीं सताता। न तो जागा हुआ आदमी शैतान होने की कामना करता है, और न साधु होने की कामना करता है। जागा हुआ आदमी, जागा हुआ आदमी है। अब इन स्वप्नों से कुछ लेना-देना नहीं है |
- ओशो
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