विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 10
( " प्रिय देवी , प्रेम किये जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो ." )
तुम्हारे शिथिल होने के अनुभव में प्रेम का अनुभव निकटतम है . अगर तुम प्रेम नहीं कर सकते हो तो तुम शिथिल भी नहीं हो सकते हो . और अगर तुम शिथिल हो सके तो तुम्हारा जीवन प्रेमपूर्ण हो जायेगा .
एक तनाव ग्रस्त आदमी प्रेम नहीं कर सकता है . क्यों ? क्योंकि तनावग्रस्त आदमी सदा उद्देश्य से , प्रयोजन से जीता है . वह धन कमा सकता है , लेकिन प्रेम नहीं कर सकता . क्योंकि प्रेम प्रयोजन-रहित है . प्रेम कोई वस्तु नहीं है . तुम उसे संग्रहीत नहीं कर सकते , तुम उसे बैंक-खाते में नहीं रख सकते हो . तुम उससे अपने अहंकार की पुष्टि नहीं कर सकते हो . सच तो यह है कि प्रेम सबसे अर्थहीन काम है ; उससे आगे उसका कोई अर्थ नहीं है , उससे आगे उसका कोई प्रयोजन नहीं है . प्रेम अपने आप में जीता है , किसी अन्य चीज के लिए नहीं .
शिव प्रेम से शुरू करते हैं : " प्रिय देवी , प्रेम किये जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो ."
इसका क्या अर्थ है ? कई चीजें . एक , जब तुम्हें प्रेम किया जाता है तो अतीत समाप्त हो जाता है और भविष्य नहीं है . तुम वर्तमान के आयाम में गति कर जाते हो , तुम अब में प्रवेश कर जाते हो . क्या तुमने कभी किसी को प्रेम किया है ? यदि कभी किया है तो जानते हो कि उस क्षण में मन नहीं होता है .
यही कारण है कि तथाकथित बुद्धिमान कहते हैं कि प्रेमी अंधे होते हैं , मनःशून्य और पागल होते हैं . वस्तुतः वे सच कहते हैं . प्रेमी इस अर्थ में अंधे होते हैं कि भविष्य परअपने किया का हिसाब रखने वाली आँख उनके पास नहीं होती है . वे अन्धें हैं , क्योंकि वे अतीत को नहीं देख पाते . प्रेमियों को क्या हो जाता है ?
वे 'अभी' और 'यहीं' में सरक आते हैं , अतीत और भविष्य कि चिंता नहीं करते , क्या होगा इसकी चिंता नहीं लेते . इस कारण वे अंधे कहे जाते हैं . वे हैं . जो गणित करते हैं उनके लिए वे अन्धें है , और जो गणित नहीं करते उनके लिए आँख वाले हैं . जो हिसाबी नहीं हैं वे देख लेंगे कि प्रेम ही असली आँख है , वास्तविक दृष्टि है .
इसलिए पहली चीज कि प्रेम के क्षण में अतीत ओर भविष्य नहीं होते हैं . तब एक नाज़ुक बिंदु समझने जैसा है . जब अतीत और भविष्य नहीं रहते तब क्या तुम इस क्षण को वर्तमान कह सकते हो ? यह वर्तमान है दो के बीच , अतीत और भविष्य के बीच ; यह सापेक्ष है . अगर अतीत और भविष्य नहीं रहे तो इसे वर्तमान कहने में क्या तुक है ! वह अर्थहीन है . इसीलिए शिव वर्तमान शब्द का व्यवहार नहीं करते ; वे कहते हैं , नित्य जीवन . उनका मतलब शाश्वत से है-- शाश्वत में प्रवेश करो .
तुम्हारे शिथिल होने के अनुभव में प्रेम का अनुभव निकटतम है . अगर तुम प्रेम नहीं कर सकते हो तो तुम शिथिल भी नहीं हो सकते हो . और अगर तुम शिथिल हो सके तो तुम्हारा जीवन प्रेमपूर्ण हो जायेगा .
एक तनाव ग्रस्त आदमी प्रेम नहीं कर सकता है . क्यों ? क्योंकि तनावग्रस्त आदमी सदा उद्देश्य से , प्रयोजन से जीता है . वह धन कमा सकता है , लेकिन प्रेम नहीं कर सकता . क्योंकि प्रेम प्रयोजन-रहित है . प्रेम कोई वस्तु नहीं है . तुम उसे संग्रहीत नहीं कर सकते , तुम उसे बैंक-खाते में नहीं रख सकते हो . तुम उससे अपने अहंकार की पुष्टि नहीं कर सकते हो . सच तो यह है कि प्रेम सबसे अर्थहीन काम है ; उससे आगे उसका कोई अर्थ नहीं है , उससे आगे उसका कोई प्रयोजन नहीं है . प्रेम अपने आप में जीता है , किसी अन्य चीज के लिए नहीं .
शिव प्रेम से शुरू करते हैं : " प्रिय देवी , प्रेम किये जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो ."
इसका क्या अर्थ है ? कई चीजें . एक , जब तुम्हें प्रेम किया जाता है तो अतीत समाप्त हो जाता है और भविष्य नहीं है . तुम वर्तमान के आयाम में गति कर जाते हो , तुम अब में प्रवेश कर जाते हो . क्या तुमने कभी किसी को प्रेम किया है ? यदि कभी किया है तो जानते हो कि उस क्षण में मन नहीं होता है .
यही कारण है कि तथाकथित बुद्धिमान कहते हैं कि प्रेमी अंधे होते हैं , मनःशून्य और पागल होते हैं . वस्तुतः वे सच कहते हैं . प्रेमी इस अर्थ में अंधे होते हैं कि भविष्य परअपने किया का हिसाब रखने वाली आँख उनके पास नहीं होती है . वे अन्धें हैं , क्योंकि वे अतीत को नहीं देख पाते . प्रेमियों को क्या हो जाता है ?
वे 'अभी' और 'यहीं' में सरक आते हैं , अतीत और भविष्य कि चिंता नहीं करते , क्या होगा इसकी चिंता नहीं लेते . इस कारण वे अंधे कहे जाते हैं . वे हैं . जो गणित करते हैं उनके लिए वे अन्धें है , और जो गणित नहीं करते उनके लिए आँख वाले हैं . जो हिसाबी नहीं हैं वे देख लेंगे कि प्रेम ही असली आँख है , वास्तविक दृष्टि है .
इसलिए पहली चीज कि प्रेम के क्षण में अतीत ओर भविष्य नहीं होते हैं . तब एक नाज़ुक बिंदु समझने जैसा है . जब अतीत और भविष्य नहीं रहते तब क्या तुम इस क्षण को वर्तमान कह सकते हो ? यह वर्तमान है दो के बीच , अतीत और भविष्य के बीच ; यह सापेक्ष है . अगर अतीत और भविष्य नहीं रहे तो इसे वर्तमान कहने में क्या तुक है ! वह अर्थहीन है . इसीलिए शिव वर्तमान शब्द का व्यवहार नहीं करते ; वे कहते हैं , नित्य जीवन . उनका मतलब शाश्वत से है-- शाश्वत में प्रवेश करो .
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