विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 106
[ " हर मनुष्य की चेतना को अपनी ही चेतना जानो . अतः आत्मचिंता को त्यागकर प्रत्येक प्राणी हो जाओ . " ]
किसी वृक्ष के साथ बैठो और महसूस करो कि तुम वृक्ष बन गए हो . और जब हवा चलती है और पूरा वृक्ष डोलता है , झूमता है , तो उस कंपन को अपने भीतर महसूस करो . जब सूरज उगता है और पूरा वृक्ष जीवंत हो जाता है , तो उस जीवंतता को अपने भीतर महसूस करो . जब वर्षा होती है और पूरा वृक्ष संतुष्ट और तृप्त हो जाता है , एक लंबी प्यास , एक लंबी प्रतीक्षा समाप्त हो जाती है और वृक्ष परितृप्त हो जाता है , तो वृक्ष के साथ तृप्त और संतुष्ट अनुभव करो . और तब तुम वृक्ष के सूक्ष्म भाव-भंगिमाओं के प्रति सजग हो जाओगे .
हर रोज कम से कम एक घंटे के लिए किसी भी चीज के साथ समानुभूति में चले जाओ . शुरू में तो तुम्हें लगेगा तुम पागल हो रहे हो . तुम सोचोगे , ' मैं किस तरह की मूर्खता कर रहा हूं ? ' तुम चारों ओर देखोगे और महसूस करोगे कि यदि कोई देख ले या किसी को पता लग जाए तो वह सोचेगा कि तुम पागल हो गए हो . लेकिन केवल शुरू में ही ऐसा होगा , एक बार समानुभूति के इस जगत में तुम प्रवेश कर जाओ तो सारा संसार तुम्हें पागल नज़र आएगा . वे लोग बेकार में ही इतना कुछ चूक रहे हैं . जीवन इतने अतिरेक में देता है और वे इसे चूक रहे हैं . वे इसलिए चूक रहे हैं क्योंकि वे बंद है : वे जीवन को अपने भीतर प्रवेश नहीं करने देते . और जीवन तुममें केवल तभी प्रवेश कर सकता है जब कई-कई मार्गों से , कई-कई आयामों से तुम जीवन में प्रवेश करो . कम से कम एक घंटा हर रोज समानुभूति को साधो .
मन की प्रार्थनापूर्ण दशा के लिए हर रोज एक घंटा अलग से निकाल लो और अपनी प्रार्थना को शाब्दिक मत बनाओ , उसमें भाव भरो . खोपड़ी से बोलने की बजाय अनुभव करो . जाओ और वृक्ष को छुओ , उसे गले लगाओ , चूमो ; अपनी आंखें बंद कर लो और वृक्ष के साथ ऐसे हो जाओ जैसे तुम अपनी प्रेमिका के साथ हो . उसे महसूस करो . और शीघ्र ही तुम्हें एक गहन बोध होगा कि अपने आप को छोड़ कर दूसरा बन जाने का क्या अर्थ है .
किसी वृक्ष के साथ बैठो और महसूस करो कि तुम वृक्ष बन गए हो . और जब हवा चलती है और पूरा वृक्ष डोलता है , झूमता है , तो उस कंपन को अपने भीतर महसूस करो . जब सूरज उगता है और पूरा वृक्ष जीवंत हो जाता है , तो उस जीवंतता को अपने भीतर महसूस करो . जब वर्षा होती है और पूरा वृक्ष संतुष्ट और तृप्त हो जाता है , एक लंबी प्यास , एक लंबी प्रतीक्षा समाप्त हो जाती है और वृक्ष परितृप्त हो जाता है , तो वृक्ष के साथ तृप्त और संतुष्ट अनुभव करो . और तब तुम वृक्ष के सूक्ष्म भाव-भंगिमाओं के प्रति सजग हो जाओगे .
हर रोज कम से कम एक घंटे के लिए किसी भी चीज के साथ समानुभूति में चले जाओ . शुरू में तो तुम्हें लगेगा तुम पागल हो रहे हो . तुम सोचोगे , ' मैं किस तरह की मूर्खता कर रहा हूं ? ' तुम चारों ओर देखोगे और महसूस करोगे कि यदि कोई देख ले या किसी को पता लग जाए तो वह सोचेगा कि तुम पागल हो गए हो . लेकिन केवल शुरू में ही ऐसा होगा , एक बार समानुभूति के इस जगत में तुम प्रवेश कर जाओ तो सारा संसार तुम्हें पागल नज़र आएगा . वे लोग बेकार में ही इतना कुछ चूक रहे हैं . जीवन इतने अतिरेक में देता है और वे इसे चूक रहे हैं . वे इसलिए चूक रहे हैं क्योंकि वे बंद है : वे जीवन को अपने भीतर प्रवेश नहीं करने देते . और जीवन तुममें केवल तभी प्रवेश कर सकता है जब कई-कई मार्गों से , कई-कई आयामों से तुम जीवन में प्रवेश करो . कम से कम एक घंटा हर रोज समानुभूति को साधो .
मन की प्रार्थनापूर्ण दशा के लिए हर रोज एक घंटा अलग से निकाल लो और अपनी प्रार्थना को शाब्दिक मत बनाओ , उसमें भाव भरो . खोपड़ी से बोलने की बजाय अनुभव करो . जाओ और वृक्ष को छुओ , उसे गले लगाओ , चूमो ; अपनी आंखें बंद कर लो और वृक्ष के साथ ऐसे हो जाओ जैसे तुम अपनी प्रेमिका के साथ हो . उसे महसूस करो . और शीघ्र ही तुम्हें एक गहन बोध होगा कि अपने आप को छोड़ कर दूसरा बन जाने का क्या अर्थ है .
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