विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 109
[ " अपने निष्क्रिय रूप को त्वचा की दीवारों का एक रिक्त कक्ष मानो-- सर्वथा रिक्त . " ]
अपने निष्क्रिय रूप को त्वचा की दीवारों का एक रिक्त कक्ष मानो , लेकिन भीतर सब कुछ रिक्त हो . यह सुंदरतम विधियों में से एक है . किसी भी ध्यानपूर्ण मुद्रा में , अकेले , शांत होकर बैठ जाओ , तुम्हारी रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और पूरा शरीर विश्रांत , जैसे कि सारा शरीर रीढ़ की हड्डी पर टंगा हो . फिर अपने आंखें बंद कर लो . कुछ क्षण के लिए विश्रांत से विश्रांत अनुभव करते चले जाओ , लयबद्ध होने के लिए कुछ क्षण ऐसा करो . और फिर अचानक अनुभव करो कि तुम्हारा शरीर त्वचा की दीवारें मात्र है और भीतर कुछ भी नहीं है , घर खाली है , भीतर कोई नहीं है . कई बार तुम विचारों को गुजरते हुए देखोगे , विचारों के मेघों को विचरते पाओगे , लेकिन ऐसा मत सोचो कि वे तुम्हारे हैं . तुम हो ही नहीं . बस ऐसा सोचो कि वे रिक्त आकाश में घूम रहे हैं , वे किसी के भी नहीं हैं , उनकी कोई जड़े नहीं हैं .
वास्तव में ऐसा ही है : विचार केवल आकाश में घूमते मेघों के समान हैं . न तो उनकी कोई जड़े हैं , न आकाश से उनका कोई संबंध है , वे बस आकाश में इधर से उधर घूमते रहते हैं . वे आते हैं और चले जाते हैं , और आकाश अस्पर्शित , अप्रभावित बना रहता है . अनुभव करो कि तुम्हारा शरीर बस त्वचा की दीवारें हैं और भीतर कोई भी नहीं है . विचार जारी रहेंगे , पुरानी आदत , पुरानी लय , पुराने सहयोग के कारण विचार आते रहेंगे . लेकिन इतना ही सोचो कि वे आकाश में घुमते हुए आधारहीन मेघ हैं . वे तुम्हारे नहीं हैं , वे किसी के भी नहीं हैं . भीतर कोई भी नहीं है जिससे वे सम्बंधित हों , तुम तो रिक्त हो .
' अपने निष्क्रिय रूप को त्वचा की दीवारों का एक रिक्त कक्ष मानो '-- बिलकुल जैसे कोई खाली कमरा होता है-- ' सर्वथा रिक्त . ' उस रिक्तता में गिरते जाओ . एक क्षण आएगा जब तुम अनुभव करोगे कि सब कुछ समाप्त हो गया ; कि अब कोई भी नहीं बचा , घर खाली है , घर का स्वामी मिट गया , तिरोहित हो गया . उस अंतराल में , जब तुम नहीं होओगे तो परमात्मा प्रकट होगा . जब तुम नहीं होते , परमात्मा होता है . जब तुम नहीं होते , आनंद होता है . इसलिए मिटने का प्रयास करो . भीतर से मिटने का प्रयास करो .
अपने निष्क्रिय रूप को त्वचा की दीवारों का एक रिक्त कक्ष मानो , लेकिन भीतर सब कुछ रिक्त हो . यह सुंदरतम विधियों में से एक है . किसी भी ध्यानपूर्ण मुद्रा में , अकेले , शांत होकर बैठ जाओ , तुम्हारी रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और पूरा शरीर विश्रांत , जैसे कि सारा शरीर रीढ़ की हड्डी पर टंगा हो . फिर अपने आंखें बंद कर लो . कुछ क्षण के लिए विश्रांत से विश्रांत अनुभव करते चले जाओ , लयबद्ध होने के लिए कुछ क्षण ऐसा करो . और फिर अचानक अनुभव करो कि तुम्हारा शरीर त्वचा की दीवारें मात्र है और भीतर कुछ भी नहीं है , घर खाली है , भीतर कोई नहीं है . कई बार तुम विचारों को गुजरते हुए देखोगे , विचारों के मेघों को विचरते पाओगे , लेकिन ऐसा मत सोचो कि वे तुम्हारे हैं . तुम हो ही नहीं . बस ऐसा सोचो कि वे रिक्त आकाश में घूम रहे हैं , वे किसी के भी नहीं हैं , उनकी कोई जड़े नहीं हैं .
वास्तव में ऐसा ही है : विचार केवल आकाश में घूमते मेघों के समान हैं . न तो उनकी कोई जड़े हैं , न आकाश से उनका कोई संबंध है , वे बस आकाश में इधर से उधर घूमते रहते हैं . वे आते हैं और चले जाते हैं , और आकाश अस्पर्शित , अप्रभावित बना रहता है . अनुभव करो कि तुम्हारा शरीर बस त्वचा की दीवारें हैं और भीतर कोई भी नहीं है . विचार जारी रहेंगे , पुरानी आदत , पुरानी लय , पुराने सहयोग के कारण विचार आते रहेंगे . लेकिन इतना ही सोचो कि वे आकाश में घुमते हुए आधारहीन मेघ हैं . वे तुम्हारे नहीं हैं , वे किसी के भी नहीं हैं . भीतर कोई भी नहीं है जिससे वे सम्बंधित हों , तुम तो रिक्त हो .
' अपने निष्क्रिय रूप को त्वचा की दीवारों का एक रिक्त कक्ष मानो '-- बिलकुल जैसे कोई खाली कमरा होता है-- ' सर्वथा रिक्त . ' उस रिक्तता में गिरते जाओ . एक क्षण आएगा जब तुम अनुभव करोगे कि सब कुछ समाप्त हो गया ; कि अब कोई भी नहीं बचा , घर खाली है , घर का स्वामी मिट गया , तिरोहित हो गया . उस अंतराल में , जब तुम नहीं होओगे तो परमात्मा प्रकट होगा . जब तुम नहीं होते , परमात्मा होता है . जब तुम नहीं होते , आनंद होता है . इसलिए मिटने का प्रयास करो . भीतर से मिटने का प्रयास करो .
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