विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 16
(" हे भगवती , जब इन्द्रियां हृदय में विलीन हों , कमल के केन्द्र पर पहुँचो .")
इस विधि के लिए क्या करना है ? " जब इन्द्रियां हृदय में विलीन हों..." प्रयोग करके देखो . कई उपाय संभव हैं . तुम किसी व्यक्ति को स्पर्श करते हो ; अगर तुम हृदय वाले आदमी हो तो वह स्पर्श शीघ्र ही तुम्हारे हृदय में पहुँच जायेगा और तुम्हें उसकी गुणवत्ता महसूस हो सकती है . अगर तुम किसी मस्तिष्क वाले व्यक्ति का हाथ अपने हाथ में लोगे तो उसका हाथ ठंडा होगा -- शारीरिक रूप से नहीं , भावात्मक रूप से . उसके हाथ में एक तरह का मुर्दापन होगा . और अगर वह व्यक्ति हृदय वाला है तो उसके हाथ में एक ऊष्मा होगी ; तब उसका हाथ तुम्हारे साथ पिघलने लगेगा , उसके हाथ से कोई चीज निकलकर तुम्हारे भीतर बहने लगेगी और तुम दोनों के बीच एक तालमेल होगा , ऊष्मा का संवाद होगा . यह ऊष्मा हृदय से आ रही है . यह मस्तिष्क से नहीं आ सकती , क्योंकि मस्तिष्क सदा ठंडा और हिसाबी है . हृदय ऊष्मा वाला है , वह हिसाबी नहीं है .
स्पर्श करो , छुओ . आँख बंद करो और किसी चीज को स्पर्श करो . अपनी प्रेमी या प्रेमिका को छुओ , अपनी माँ को या बच्चे को छुओ , या मित्र को , या वृक्ष , फूल या महज धरती को छुओ . आँखें बंद रखो और धरती और अपने हृदय के बीच , प्रेमिका और अपने बीच होते आंतरिक संवाद को महसूस करो . भाव करो कि तुम्हारा हाथ ही तुम्हारा हृदय है जो धरती को स्पर्श करने को बढ़ा है . स्पर्श की अनुभूति को हृदय से जुड़ने दो .
तुम संगीत सुन रहे हो , उसे मस्तिष्क से मत सुनो . अपने मस्तिष्क को भूल जाओ और समझो कि मैं बिना मस्तिष्क के हूँ , मेरा कोई सिर नहीं है . अच्छा है कि अपने सोने के कमरे में अपना एक चित्र रख लो जिसमें सिर न हो . उस पर ध्यान को एकाग्र करो और भाव करो कि तुम बिना सिर के हो . सिर को आने ही मत दो और संगीत को हृदय से सुनो . भाव करो कि संगीत तुम्हारे हृदय में जा रहा है , हृदय को संगीत के साथ उद्वेलित होने दो . तुम्हारी इन्द्रियों को भी हृदय से जड़ने दो , मस्तिष्क से नहीं . यह प्रयोग सभी इन्द्रियों के साथ करो और अधिकाधिक भाव करो कि प्रत्येक ऐंद्रिक अनुभव हृदय में जाता है और उसमें विलीन हो जाता है .
इस विधि के लिए क्या करना है ? " जब इन्द्रियां हृदय में विलीन हों..." प्रयोग करके देखो . कई उपाय संभव हैं . तुम किसी व्यक्ति को स्पर्श करते हो ; अगर तुम हृदय वाले आदमी हो तो वह स्पर्श शीघ्र ही तुम्हारे हृदय में पहुँच जायेगा और तुम्हें उसकी गुणवत्ता महसूस हो सकती है . अगर तुम किसी मस्तिष्क वाले व्यक्ति का हाथ अपने हाथ में लोगे तो उसका हाथ ठंडा होगा -- शारीरिक रूप से नहीं , भावात्मक रूप से . उसके हाथ में एक तरह का मुर्दापन होगा . और अगर वह व्यक्ति हृदय वाला है तो उसके हाथ में एक ऊष्मा होगी ; तब उसका हाथ तुम्हारे साथ पिघलने लगेगा , उसके हाथ से कोई चीज निकलकर तुम्हारे भीतर बहने लगेगी और तुम दोनों के बीच एक तालमेल होगा , ऊष्मा का संवाद होगा . यह ऊष्मा हृदय से आ रही है . यह मस्तिष्क से नहीं आ सकती , क्योंकि मस्तिष्क सदा ठंडा और हिसाबी है . हृदय ऊष्मा वाला है , वह हिसाबी नहीं है .
स्पर्श करो , छुओ . आँख बंद करो और किसी चीज को स्पर्श करो . अपनी प्रेमी या प्रेमिका को छुओ , अपनी माँ को या बच्चे को छुओ , या मित्र को , या वृक्ष , फूल या महज धरती को छुओ . आँखें बंद रखो और धरती और अपने हृदय के बीच , प्रेमिका और अपने बीच होते आंतरिक संवाद को महसूस करो . भाव करो कि तुम्हारा हाथ ही तुम्हारा हृदय है जो धरती को स्पर्श करने को बढ़ा है . स्पर्श की अनुभूति को हृदय से जुड़ने दो .
तुम संगीत सुन रहे हो , उसे मस्तिष्क से मत सुनो . अपने मस्तिष्क को भूल जाओ और समझो कि मैं बिना मस्तिष्क के हूँ , मेरा कोई सिर नहीं है . अच्छा है कि अपने सोने के कमरे में अपना एक चित्र रख लो जिसमें सिर न हो . उस पर ध्यान को एकाग्र करो और भाव करो कि तुम बिना सिर के हो . सिर को आने ही मत दो और संगीत को हृदय से सुनो . भाव करो कि संगीत तुम्हारे हृदय में जा रहा है , हृदय को संगीत के साथ उद्वेलित होने दो . तुम्हारी इन्द्रियों को भी हृदय से जड़ने दो , मस्तिष्क से नहीं . यह प्रयोग सभी इन्द्रियों के साथ करो और अधिकाधिक भाव करो कि प्रत्येक ऐंद्रिक अनुभव हृदय में जाता है और उसमें विलीन हो जाता है .
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