विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 37
["हे देवी , बोध के मधु-भरे दृष्टिपथ में संस्कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्पना करो--पहले अक्षरों की भांति , फिर सूक्ष्मतर ध्वनि की भांति , और फिर सूक्ष्मतम भाव की भांति . और तब , उन्हें छोड़कर मुक्त होओ."]
पहले अपने भीतर , अपनी चेतना में , " बोध के मधु-भरे दृष्टिपथ " में अ , ब , स , आदि अक्षरों को अनुभव करो . किसी भी भाषा के अक्षरों से काम चल जाएगा . और यह किया जा सकता है ; यह बहुत सुंदर प्रयोग है . अगर तुम इसे प्रयोग करना चाहो तो पहले आंख बंद करो और भीतर अपनी चेतना को इन अक्षरों से भर जाने दो . चेतना को काली पट्टी समझो और तब उस पर अ , ब , स , अक्षरों की कल्पना करो . कल्पना में उन्हें सावचेत होकर और साफ़-साफ़ लिखो ओर उनको देखो .फिर धीरे-धीरे अक्षर अ को भूल जाओ और उसकी ध्वनि को स्मरण रखो -- सिर्फ ध्वनि को . शिव कहते हैं कि अक्षरों से ध्वनि की तरफ चलो ; इन अक्षरों के जरिये ध्वनि को उघाड़ो . पहले ध्वनि को उघाड़ो , और फिर ध्वनि के जरिये भाव को उघाड़ो . तुम्हें कैसा भाव होता है , उसके प्रति सजग होओ . जब तुम ध्वनि से भाव पर जाते हो तो तुम बहुत ही आनंदपूर्ण संसार में गति करते हो-- एक अस्तित्वगत संसार में . तुम मन से दूर हट जाते हो . भाव अस्तित्वगत है ; भाव शब्द का अर्थ ही वह है . तुम भावों क अनुभव करते हो . तुम उन्हें देख नहीं सकते , सुन नहीं सकते , सिर्फ अनुभव कर सकते हो . और जब तुम इस बिंदु पर पहुंचते हो तो छलांग लगा सकते हो . यह आखिरी कदम है . अब तुम अनंत खड्ड के पास खड़े हो ; अब कूद सकते हो . और अगर तुम भाव से छलांग लगाते हो तो तुम अपने में छलांग लगाते हो . वह अनंत , वह अतल तुम हो--मन की तरह नहीं , अस्तित्व की तरह ; संचित भविष्य की तरह नहीं , बल्कि वर्तमान की तरह , यहाँ और अभी की तरह तुम मन से अस्तित्व पर गति कर जाते हो ; और भाव उनके बीच सेतु का काम करता है .
पहले अपने भीतर , अपनी चेतना में , " बोध के मधु-भरे दृष्टिपथ " में अ , ब , स , आदि अक्षरों को अनुभव करो . किसी भी भाषा के अक्षरों से काम चल जाएगा . और यह किया जा सकता है ; यह बहुत सुंदर प्रयोग है . अगर तुम इसे प्रयोग करना चाहो तो पहले आंख बंद करो और भीतर अपनी चेतना को इन अक्षरों से भर जाने दो . चेतना को काली पट्टी समझो और तब उस पर अ , ब , स , अक्षरों की कल्पना करो . कल्पना में उन्हें सावचेत होकर और साफ़-साफ़ लिखो ओर उनको देखो .फिर धीरे-धीरे अक्षर अ को भूल जाओ और उसकी ध्वनि को स्मरण रखो -- सिर्फ ध्वनि को . शिव कहते हैं कि अक्षरों से ध्वनि की तरफ चलो ; इन अक्षरों के जरिये ध्वनि को उघाड़ो . पहले ध्वनि को उघाड़ो , और फिर ध्वनि के जरिये भाव को उघाड़ो . तुम्हें कैसा भाव होता है , उसके प्रति सजग होओ . जब तुम ध्वनि से भाव पर जाते हो तो तुम बहुत ही आनंदपूर्ण संसार में गति करते हो-- एक अस्तित्वगत संसार में . तुम मन से दूर हट जाते हो . भाव अस्तित्वगत है ; भाव शब्द का अर्थ ही वह है . तुम भावों क अनुभव करते हो . तुम उन्हें देख नहीं सकते , सुन नहीं सकते , सिर्फ अनुभव कर सकते हो . और जब तुम इस बिंदु पर पहुंचते हो तो छलांग लगा सकते हो . यह आखिरी कदम है . अब तुम अनंत खड्ड के पास खड़े हो ; अब कूद सकते हो . और अगर तुम भाव से छलांग लगाते हो तो तुम अपने में छलांग लगाते हो . वह अनंत , वह अतल तुम हो--मन की तरह नहीं , अस्तित्व की तरह ; संचित भविष्य की तरह नहीं , बल्कि वर्तमान की तरह , यहाँ और अभी की तरह तुम मन से अस्तित्व पर गति कर जाते हो ; और भाव उनके बीच सेतु का काम करता है .
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