विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 41
["तार वाले वाद्यों को सुनते हुए उनकी संयुक्त केन्द्रीय ध्वनि को सुनो ; इस प्रकार सर्व व्यापकता को उपलब्ध होओ ."]
तुम किसी वाद्य को सुन रहे हो-- सितार या किसी अन्य वाद्य को . उसमें कई स्वर हैं . सजग होकर उसके केन्द्रीय स्वर को सुनो-- उस स्वर को जो उसका केन्द्र हो और जिसके चारों ओर और सभी स्वर घुमते हों ; उसकी आंतरिक धारा को सुनो , जो अन्य सभी स्वरों को सम्हाले हुए हो . जैसे तुम्हारे समूचे शरीर को उसका मेरुदंड , उसकी रीढ़ सम्हाले हुए है ; वैसे ही संगीत की भी रीढ़ होती है . संगीत को सुनते हुए सजग होकर उसमें प्रवेश करो और उसके मेरुदंड को खोजो--उस केन्द्रीय स्वर को खोजो जो पूरे संगीत को सम्हाले हुए है . स्वर तो आते-जाते रहते हैं ; लेकिन केन्द्रीय तत्व प्रवाहमान रहता है . उसके प्रति जागरूक होओ .
तुम किसी वाद्य को सुन रहे हो-- सितार या किसी अन्य वाद्य को . उसमें कई स्वर हैं . सजग होकर उसके केन्द्रीय स्वर को सुनो-- उस स्वर को जो उसका केन्द्र हो और जिसके चारों ओर और सभी स्वर घुमते हों ; उसकी आंतरिक धारा को सुनो , जो अन्य सभी स्वरों को सम्हाले हुए हो . जैसे तुम्हारे समूचे शरीर को उसका मेरुदंड , उसकी रीढ़ सम्हाले हुए है ; वैसे ही संगीत की भी रीढ़ होती है . संगीत को सुनते हुए सजग होकर उसमें प्रवेश करो और उसके मेरुदंड को खोजो--उस केन्द्रीय स्वर को खोजो जो पूरे संगीत को सम्हाले हुए है . स्वर तो आते-जाते रहते हैं ; लेकिन केन्द्रीय तत्व प्रवाहमान रहता है . उसके प्रति जागरूक होओ .
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