विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 53
["जहां-जहां , जिस किसी कृत्य में संतोष मिलता हो , उसे वास्तविक करो ."]
तुम्हें प्यास लगी है , तुम पानी पीते हो , उससे एक सूक्ष्म संतोष प्राप्त होता है . पानी को भूल जाओ , प्यास को भी भूल जाओ और जो सूक्ष्म संतोष अनुभव हो रहा है उसके साथ रहो . उस संतोष से भर जाओ , बस संतुष्ट अनुभव करो . यह विधि तुम्हें विधायक दृष्टि देती है . सामान्य मन और उसकी प्रक्रिया के बिलकुल विपरीत है यह विधि . जब भी संतोष मिलता हो , जिस किसी कृत्य में संतोष मिलता हो , उसे वास्तविक करो , उसे अनुभव करो , उसके साथ हो जाओ . यह संतोष किसी बड़े विधायक अस्तित्व की झलक बन सकता है . जहां कहीं भी संतोष मिले , उसे जीयो . तुम किसी मित्रसे मिलते हो और तुम्हें प्रसन्नता अनुभव होती है ; तुम्हें अपनी प्रेमिका या अपने प्रेमी से मिलकर सुख अनुभव होता है . इस अनुभव को वास्तविक बनाओ , उस क्षण सुख ही हो जाओ और सुख को द्वार बना लो . तब तुम्हारा मन बदलने लगेगा और तब तुम सुख इकट्ठा करने लगोगे . तब तुम्हारा मन विधायक होने लगेगा और वही जगत भिन्न दिखने लगेगा .
तुम्हें प्यास लगी है , तुम पानी पीते हो , उससे एक सूक्ष्म संतोष प्राप्त होता है . पानी को भूल जाओ , प्यास को भी भूल जाओ और जो सूक्ष्म संतोष अनुभव हो रहा है उसके साथ रहो . उस संतोष से भर जाओ , बस संतुष्ट अनुभव करो . यह विधि तुम्हें विधायक दृष्टि देती है . सामान्य मन और उसकी प्रक्रिया के बिलकुल विपरीत है यह विधि . जब भी संतोष मिलता हो , जिस किसी कृत्य में संतोष मिलता हो , उसे वास्तविक करो , उसे अनुभव करो , उसके साथ हो जाओ . यह संतोष किसी बड़े विधायक अस्तित्व की झलक बन सकता है . जहां कहीं भी संतोष मिले , उसे जीयो . तुम किसी मित्रसे मिलते हो और तुम्हें प्रसन्नता अनुभव होती है ; तुम्हें अपनी प्रेमिका या अपने प्रेमी से मिलकर सुख अनुभव होता है . इस अनुभव को वास्तविक बनाओ , उस क्षण सुख ही हो जाओ और सुख को द्वार बना लो . तब तुम्हारा मन बदलने लगेगा और तब तुम सुख इकट्ठा करने लगोगे . तब तुम्हारा मन विधायक होने लगेगा और वही जगत भिन्न दिखने लगेगा .
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