विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 73
[ "ग्रीष्म ऋतु में जब तुम समस्त आकाश को अंतहीन निर्मलता में देखो , उस निर्मलता में प्रवेश करो ." ]
अगर तुम निर्मल , निरभ्र आकाश पर ध्यान करोगे तो तुम अचानक महसूस करोगे कि तुम्हारा मन विलीन हो रहा है , विदा हो रहा है . ऐसे अंतराल होंगे , जिनमें अचानक तुम्हें बोध होगा कि निर्मल आकाश तुम्हारे भीतर प्रवेश कर गया है . ऐसे अंतराल होंगे , जिनमें कुछ देर के लिए विचार खो जाएंगे--मानो चलती सड़क अचानक सूनी हो गई और वहां कोई नहीं चल रहा है . आरंभ में यह अनुभव कुछ क्षणों के लिए ही होगा ; लेकिन वे क्षण भी बहुत रूपांतरकारी हैं . फिर धीरे-धीरे मन की गति धीमी होने लगेगी और अंतराल बड़े होने लगेंगे . अनेक क्षणों तक कोई विचार , कोई बादल नहीं होगा . और जब कोई विचार , कोई बादल नहीं होगा तो बाहरी आकाश और भीतरी आकाश एक हो जाएंगे .
अगर तुम निर्मल , निरभ्र आकाश पर ध्यान करोगे तो तुम अचानक महसूस करोगे कि तुम्हारा मन विलीन हो रहा है , विदा हो रहा है . ऐसे अंतराल होंगे , जिनमें अचानक तुम्हें बोध होगा कि निर्मल आकाश तुम्हारे भीतर प्रवेश कर गया है . ऐसे अंतराल होंगे , जिनमें कुछ देर के लिए विचार खो जाएंगे--मानो चलती सड़क अचानक सूनी हो गई और वहां कोई नहीं चल रहा है . आरंभ में यह अनुभव कुछ क्षणों के लिए ही होगा ; लेकिन वे क्षण भी बहुत रूपांतरकारी हैं . फिर धीरे-धीरे मन की गति धीमी होने लगेगी और अंतराल बड़े होने लगेंगे . अनेक क्षणों तक कोई विचार , कोई बादल नहीं होगा . और जब कोई विचार , कोई बादल नहीं होगा तो बाहरी आकाश और भीतरी आकाश एक हो जाएंगे .
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