Osho Hindi Pdf- Bahuri Na Aisa बहुरी न ऐसा दाव
बहुरी न ऐसा दाव
जीवित गुरु--जीवंत धर्म
पहला प्रश्नः
भगवान,
जीवित सदगुरु के पास इतना खतरनाक क्यों है? सब कुछ दांव पर लगा कर आपके बुद्धऊर्जा क्षेत्र में डूबने के लिए इतने कम लोग क्यों आ पाते हैं? जबकि पलटू की तरह आपका आह्वान पूरे विश्व में गूंज उठा है
बहुरि न ऐसा दाव, नहीं फिर मानुष होना,
क्या ताकै तू ठाढ़, हाथ से जाता सोना।
भगवान, अनुकंपा करें, बोध दें।
योग चिन्मय, जीवन ही खतरनाक है। मृत्यु सुविधापूर्ण हैं। मृत्यु ज्यादा और आरामदायक कुछ भी नहीं। इसलिए लोग मृत्यु को वरण करते हैं, जीवन का निषेध।। लोग ऐसे जीते हैं, जिसमें कम से कम जीना पड़े, न्यूनतम--क्योंकि जितने कम जीएंगे उतना कम खतरा है; जितने ज्यादा जीएंगे उतना ज्यादा खतरा है। जितनी त्वरा होगी जीवन में उतनी ही आग होगी, उतनी ही तलवार में धार। जीवन को गहनता से जीना, समग्रता से जीना--पहाड़ों की ऊंचाइयों पर चलना है। ऊंचाइयों से कोई गिर सकता है। जो गिरने से डरते हैं, वे समतल भूमि पर सरकते हैं; चलते भी नहीं घिसटते हैं। उड़ने की तो बात दूर। और सदगुरु के पास होना तो सूर्य की ओर उड़ान है। शिष्य तो ऐसे है जैसे सूर्यमुखी का फूल; जिस तरह सूरज घूमता, उस तरह शिष्य घूम जाता।
सूर्य पर उसकी श्रद्धा अखंड है। सूर्य ही उसका जीवन है। सूर्य नहीं तो वह नहीं। जैसे ही सूरज डूबा, सूर्यमुखी का फूल बंद हो जाता है। जैसे ही सूरज ऊगा, सूर्यमुखी खिला, आह्लादित हुआ, नाचा हवाओं में, मस्त हुआ, पी धूप। उसके जीवन में तत्क्षण नृत्य आ जाता है। फ्रेड्रिक नीत्शे का प्रसिद्ध वचन है: "लिव डेन्जरसली। खतरनाक ढंग से जीओ।' सच तो यह है, इसमें दो ही शब्द हैं--"खतरनाक ढंग' और "जीना। एक ही शब्द काफी है। दो शब्दों में पुनरुक्ति हैं। जीना ही खतरनाक ढंग से जीना है। और तो कोई जीने का उपाय नहीं, और तो कोई विधि नहीं। इसलिए सदियों-सदियों से धर्म ने जीवन-निषेध का रूप लिया। यह कायरों का ढंग है। यह कायरों की जीवन-शैली है--भोगा, जीओ मत; छिप रहो किसी दूर गुफा में, कहीं हिमालय में, जहां जीवन न के बराबर होगा। क्या होगा जीवन हिमालय की गुफा में? क्या जीवन हो सकता है जहां संबंध नहीं? जितने संबंध हैं उतना जीवन है--उतनी जीवन की गहनता है, सघनता है, विस्तार। जी भर जीने का अर्थ होता है--अनंत-अनंत संबंधों में जीओ।
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