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    Osho Hindi Pdf- Bin Ghan Parat Puhar बिन धन परत फुहार

    Osho Hindi Pdf- Bin Ghan Parat Puhar

    बिन धन परत फुहार

    सूत्र राम तजूं पै गुरु न बिसाऊं। 
    गुरु को सम हरि को न निहारू।। 
    हरि ने जनम दियो जग माहीं। 
    गुरु ने आवागमन छुटाहीं।। 
    हरि ने पाचं चोर दिये साथा। 
    गुरु ने लई छुटाया अनाथा।। 
    हरि ने कुटुंब जाल में गेरी। 
    गुरु ने काटी ममता बेरी।। 
    हरि ने रोग भोग उरझायौ। 
    गुरु जोगी कर सबै छुटायौ।। 
    हरि ने कर्म भर्म भरमायौं। 
    गुरु ने आतम रुप लखायौ।। 
    हरि ने मोसू आप छिपायाँ। 
    गुरु दीपक दै ताहि दिखायौ।। 
    फिर हरि बंधि मुक्ति गति लाये। 
    गुरु ने सबही भर्म मिटाये।। 
    चरनदास पर तन मन वारूं। 
    गुरु न त हरि को तज डाऊं।। 
    रस बरसै मैं भी 
    पिन धन परत फुहार--यह वार्तामाला एक नयी ही यात्रा होगी। मैं अब तम मुक्त पुरुषों पर बोला हूं। पहली बार एक मुक्तनारी पर चर्चा शुरु करता हूं। मुक्त पुरुषों पर बोलना आसान था। उन्हें मैं समझ सकता हूं--ये सजातीय हैं। मुक्तनारी पर बोलना थोड़ा कठिन होगा--यह थोड़ा अजनबी रास्ता है। ऐसे तो पुरुष और नारी अंतरतम में एक हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्तियां बड़ी भिन्न-भिन्न हैं। उनके होने का ढंग, उनके दिखायी पड़ने की व्यवस्था, उनका वक्तव्य, उनके सोचने की प्रक्रिया, न केवल भिन्न है बल्कि विपरीत है। अब तक किसी मुक्तनारी पर नहीं बोला। तुम थोड़ा मुक्त पुरुषों को समझ लो, तुम थोड़ा मुक्ति का स्वाद चल लो, तो शायद मुक्तनारी को समझना भी आसान हो जाए। जैसे सूरज की किरण तो सफेद है, पर प्रिज्म से गुजर कर सात रंगों में टूट जाता है। हरा रंग लाल रंग नहीं है, और न लाल रंग हरा रंग है। यद्यपि दोनों एक ही किरण से टूटकर बने हैं, और दोनों अंततः मिलकर पुनः एक किरण हो जाएंगे। टने के पहले एक थे, मिलने के बाद फिर एक हो जाएंगे, पर बीच में बड़ा फासला है। और फासला बड़ा प्रीतिकर है। बड़ा भेद है बीच में, और भेद मिटना चाहिए। भेद सदा बना रहे, क्योंकि उसी भेद में........

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