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    Osho Hindi Pdf- Guru Pratap गुरु-परताप साध वी संगति

    Osho Hindi Pdf- Guru Pratap


    गुरु-परताप साध वी संगति

    गुरु-परताप साध वी संगति अनंत-अनंत काल के दीत जाने पर कोई सद्गुरु होता है। सिद्ध तो बहुत होते हैं , सद्गुरु वहुत थोड़े। सिद्ध वह जिसने सत्य को जाना; सद्गुरु वह जिसने जाना हनी , जनाया भी। सिद्ध वह जो स्वयं पा लिया लेकिन बांट न सका; सद्गुरु वह, जिसने पाया और बांटा। सिद्ध स्वयं तो हीन हो जाता है परमात्मा के विरा ट सागर में; मगर वह जो मनुष्यता की भटकती हुई भीड़ है-अज्ञान में, अंधकार में, अंधविश्वास में-उसे नहीं तार पाता| सिद्ध तो ऐसे है जैसे छोटी-सी डोरी मछुए वी, बस एक आदमी उसमें बैठ सकता है। सिद्ध का यान हीनयान है; उस में दो की सवानी नहीं हो सकती, वह अकेला ही जाता है। सद्गुरु का यान महा यान है; वह वही नाव है; उसमें बहुत समा जाते हैं। जिनमें भी साहस है, वे सब उसमें समा जाते हैं। एक सद्गुरु अनंतों के लिए द्वार बन जाता है। सिद्ध तो बहुत होते हैं, सदगुरु बहुत थोड़े होते हैं। और सद्गुरु जब हो तो अवस र चूकना मत।

    सद्गुरु का संदेश क्या है? फिर सद्गुरु कोई भी हो-गुलाल हो, कीर हो कि नानक, मंसूर हो, राबिया कि जलालुहीन-कुछ भेद नहीं पड़ता। सद्गुरुओं के ना म ही अलग हैं, उनका स्वर एक, उनका संरीत एक; उनवी पुकार एक, उनका आवाहन एक; उनवी भाषा अनेक होरी मगर उनका भाव अनेक नहीं। जिसने ए क सद्गुरु को पहचाना उसने सारे सद्गुरुओं को पहचान लिया-अतीत के, वर्तमा न के भी, भविष्य के भी। सद्गुरु में समय के भेद मिट जाते हैं जो पहले हुए हैं, वे भी उसमें मौजूद; जो अभी हैं, वे भी उसमें मौजूद; जो की होंगे, वे भी उ समें मौजूद। सद्गुरु शुद्ध प्रकाश है जिस पर कोई भी अंधकार वी सीमा नहीं। जो झुकेगा सद्गुरु के चरणों में उसके लिए द्वार खुलने लगते हैं। झुके बिना ये द्वा र नहीं खुलते। जो अकड़ा है उसके लिए तो द्वार बंद हैं। खुला द्वार भी उसके । लए बंद है क्योकि अकड़ के कारण उसकी आंख बंद है| 

    अहंकार आदमी को अं धा करता है; विनम्रता उसे आंख देती है| जो जितना सोचता है 'मैं हूँ' उतना ही परमात्मा से दूर होता है। जो जितना जानता है 'मैं नहीं हूं', उतना परमात्म 1 के निकट सरकने लगा, उतनी उपासना होने लगे, उतना उपनिषद् जगने लगा , उतनी निकटता बढ़ने लगे, उतना सामीप्य | और जिसने जाना कि 'मैं हूं ही न ही', वह परमात्मा हो जाता है। जिसने जाना कि मैं हूं ही नहीं, वह कह सकता है-अहं ब्रह्मास्मि- में ब्रह्म हूं। 

    इस किनारे पर उस किनारे की खबर तो वहीं दे सकता है जो उस किनारे पहुंच गया हो। सिद्ध भी उस किनारे पहुंचते हैं मगर वे लौटते नहीं, वे गए सो गए। जैन और वौद्ध शास्त्रों ने उन्हें अर्हत कहा है| गए सो गए। वे फिर लौटते नहीं, वे खवर देने भी नहीं लौटते। ड्वे सो डुबे| वे इस किनारे फिर नहीं आते। और


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