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    Osho Hindi Pdf- Satya Ki Pahli Kiran सत्य की पहली किरण

    Osho Hindi Pdf- Satya Ki Pahli Kiran


    सत्य की पहली किरण

    जीवन ही परमात्मा है। जीवन के अतिरिक्त कोई परमात्मा नहीं। जो जीवन को जी ने वी कला लेते हैं, वे प्रभु के मंदिर के निकट पहुंच जाते हैं। और जो जीवन से भा गते हैं वे जीवन से तो वंचित होते ही हैं, परमात्मा से भी वंचित हो जाते हैं। परमा त्मा अगर कहीं है तो जीवन के मंदिर में विराजमान है और जिन्हें भी उस मंदिर में प्रवेश करना है, वे जीवन के प्रति धन्यता का बांध आनंद और अनुग्रह का भाव ले कर ही प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन आज तक तीक इससे उल्टी बात समझाटी गरी है।  आज तक समझाया गया है, जीवन से पलायन (एस्केप) जीवन से रीठ फेर लेना , जीवन से दूर हट जाना, जीवन से मुक्ति वी कामना। आज तक यही सब सिखाया गया है और इसके दुष्परिणाम हुए हैं। इसके कारण ही पृथ्टी एक नरक और दुख का स्थान बन गयी है। जो पृथ्टी स्वर्ग बन सकती थी, वह नरक वन गरी है। 

    मैंने सुना है, एक संध्या स्वर्ग के द्वार पर किसी व्यक्ति ने जाकर दस्तक दी। पहरेदार ने पूछा, 'तुम कहां से आते हो?' उसने कहा, 'मंगल ग्रह से आ रहा हूं। पहरेदार ने कहा, 'तुम नरक जाओ। यह द्वार तुम्हारे लिए नहीं है। स्वर्ग के दरवाजे तुम्हारे । लए नहीं हैं। अभी नरक जाओ। वह आदमी गया भी न था कि उसके पीछे एक और आदमी ने भी द्वार खटखटाया। पहरेदार ने फिर पूछा-तुम कौन हो ? उसने कहा, में एक मनुष्य हूं और पृथ्वी से आया हूं। द्वारपाल ने दरवाजा खोल दिया और कहा तो तुम आ जाओ, तुम नरक से ही रहकर आ रहे हो (यू हेव दीन शू हेल आलरेशी ) अब तुम्हें और किसी नरक में जाने वी जरूरत नहीं। 

    मनुष्य ने पृथ्टी वी जो दुर्गति कर दी है वह बड़ी हास्यजनक और देखने जैसी है। औ र बहुत भले लोगों ने इस दुर्गति में हाथ बंटाया है। वे सारे लोग जिन्होंने जीवन की निंदा की है और जीवन को तिरस्कृत (कन्डम) किया है, जिन्होंने जीवन को असार और बुरा कहा है, जिन्होंने जीवन के प्रति घृणा सिखारी है, उन सारे लोगों ने पृथ्व १ को नरक बनाने में हाथ बंटाया है। जीवन के प्रति दुर्भाव छोड़ना होगा। धार्मिक म नुष्य को मन में जीवन के प्रति एक धन्यता का, एक कृतज्ञता (ग्रेडीटयूड) का भाव । लेना होगा। जीवन उसे असार नहीं दिखाई पड़ेगा। और अगर कहीं जीवन असार मा लूम होता है तो वह समझेगा कि मेनी कोई भूल होरी जिससे जीवन गलत दिखाई प. ड रहा है। जब भी जीवन गलत दिखाई पड़ता है तो धार्मिक आदमी अपने को गलत समझते हैं। लेकिन मनुष्य वी पुरानी भूलों में से एक यह है कि अपनी भूल दूसरे प र थोप देने की उसकी पुरानी प्रवृति है| अपनी गलती को, अपने दोष को, अपनी व्य र्थता (मीनिंगलेसनेस) को हम जीवन पर थोपकर मुक्त हो जाते हैं कि जीवन ही द् ख है, हम क्या करें। सचाई दूसरी है। हम जिस चित्त को लिए बैठे हैं वह दुख का सृजन करने वाला चि त है। हम जिस मन को लिए बैठे हैं, जिन प्रवृतियों को लिए बैठे हैं, वे प्रवृतियां दु ख को पैदा करने वाली और दुख को जन्म देने वाली वृतियां हैं। पृथ्टी वैसी ही हो जाती है जैसे हम हैं। हम मौलिक रूप से केंद्रिय हैं, पृथ्टी ...........

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