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    मुर्दा फकीर - ओशो

    Dead-Fakir-Osho
     


    मुर्दा फकीर - ओशो 


    मैंने सुना है, एक फकीर एक रास्ते से गुजरता था। सर्द रात थी और उसके हाथ-पैर ठंडे हो गए। उसके पास वस्त्र न थे। वह एक वृक्ष के नीचे रुका। सुबह जब उसकी नींद खुली, तब हाथ-पैर हिलाना भी मुश्किल था। उसने किसी किताब में पढ़ा था कि जब हाथ-पैर ठंडे हो जाते हैं तो आदमी मर जाता है। किताबें पढ़ कर जो लोग चलते हैं, वे ऐसी ही भूल में पड़ जाते हैं। उसने सोचा कि शायद मैं मर गया हूं। उसे पता था कि मरे हुए लोग कैसे हो जाते हैं। तो वह आंख बंद करके लेट रहा। कुछ लोग रास्ते से गुजरते थे, उन्होंने उस आदमी को मरा हुआ समझ कर उसकी अरथी बनाई और उसे वे मरघट की तरफ ले चले। वे एक चौरस्ते पर पहुंचे, जहां चार रास्ते फूटते थे और वे चिंता में पड़ गए कि मरघट को कौन सा रास्ता जाता है ? वे अजनबी लोग थे। उस गांव के रास्तों से परिचित न थे । वे चारों विचार करने लगे कि कोई मिल जाए गांव का रहने वाला तो हम पूछ लें कि मरघट को रास्ता कौन सा जाता है ?

    फकीर तो जिंदा था। उसने सोचा कि बेचारे बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। अब पता नहीं गांव वाला कोई आएगा कि नहीं आएगा। तो वह अरथी से बोला कि जब मैं जिंदा हुआ करता था, तब लोग बाएं रास्ते से मरघट जाते थे। हालांकि मैं मर गया हूं और अब बताने में असमर्थ हूं, लेकिन इतनी बात तो कह ही सकता हूं।

    उन चारों ने घबड़ा कर अरथी छोड़ दी ! वह फकीर नीचे गिर पड़ा! उन्होंने कहा, तुम कैसे पागल हो ? तुम बोलते हो ? कहीं मरे हुए आदमी बोलते हैं? उस फकीर ने कहा, मैंने ऐसे जिंदा आदमी देखे हैं जो नहीं बोलते हैं, तो इससे उलटा भी हो सकता है कि कुछ मुर्दे ऐसे हों जो बोलते हों। अगर कोई जिंदा आदमी चाहे तो नहीं बोले, तो कोई मुर्दा आदमी चाहे तो बोल नहीं सकता है? इसमें इतनी आश्चर्य की क्या बात है ? वह फकीर कहने लगा।

    मैंने जब यह कहानी सुनी तो मेरे मन में एक खयाल आया और वह यह, असलियत और भी उलटी है, यह तो हो भी सकता है कि मुर्दा आदमी बोलता हुआ मिल जाए; यह जरा मुश्किल ही है कि जिंदा आदमी और चुप हो जाए । जिंदा आदमी न बोले, यह जरा मुश्किल ही है। यही ज्यादा आसान मालूम पड़ता है कि मरा हुआ आदमी बोल जाए।

     - ओशो 

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