• Latest Posts

    मौन का द्वार - ओशो

     

    Door-of-Silenc-Osho


    मौन का द्वार


    परमात्मा के संबंध में जितने असत्य कहे गए और गढ़े गए हैं, उतना और किसी चीज के संबंध में नहीं । परमात्मा के संबंध में जितना झूठ प्रचलित है, उतना किसी और चीज के संबंध में नहीं। परमात्मा के संबंध में जितने असत्य, जितने झूठ, जितनी कल्पनाएं प्रचलित हैं, उतनी किसी और चीज के संबंध में नहीं। और कुछ बात ऐसी है कि शायद परमात्मा के संबंध में सत्य कहा ही नहीं जा सकता है। जो भी कहा जाता है, वह कहने के कारण ही असत्य हो जाता है।

    कुछ है, जिसे कहना संभव नहीं है। कुछ है, जिसे जाना जा सकता है लेकिन कहा नहीं जा सकता। और आश्चर्य की बात है कि जिस परमात्मा के संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता, उसके संबंध में इतने शास्त्र लिखे गए हैं जिनका हिसाब लगाना मुश्किल है।

    शब्द असमर्थ हैं। हम जो कह सकते हैं, वह संसार के आगे नहीं जाता है। शब्द में, भाषा में, संसार से आगे की बात नहीं कही जा सकती है। और इसलिए ईश्वर के संबंध में भी जो हम कहते हैं— चाहें उसे पिता कहें, चाहें मित्र कहें, चाहें प्रेमी कहें—कोई भी बात सच नहीं है। क्योंकि प्रेमी से हम जो समझते हैं, मित्र से हम जो समझते हैं, पिता से हम जो समझते हैं, परमात्मा उससे बहुत भिन्न और बहुत ज्यादा है। लेकिन हमारे पास और शब्द भी नहीं हैं। जीवन के कामचलाऊ शब्द हमारे पास हैं, उन्हीं को हम उसके संबंध में भी प्रयोग कर लेते हैं। और इसलिए जो भी सोचा- विचारा, कहा, लिखा-पढ़ा जाता है, वह हमें उसकी जरा सी भी झलक नहीं दिखा पाता ।

     - ओशो 


    No comments