विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 27
["पूरी तरह थकने तक घुमते रहो , और तब , जमीन पर गिरकर , इस गिरने में पूर्ण होओ ."]
बस वर्तुल में घूमो . कूदो , नाचो , दौड़ो , जब तक थक न जाओ घुमते रहो . यह घूमना तब तक जारी रहे जब तक ऐसा न लगे कि और एक कदम उठाना असंभव है . लेकिन यह खयाल रखो कि मन कह सकता है कि अब पूरी तरह थक गए . मन की बिलकुल मत सुनो . चलते चलो , दौड़ते रहो , नाचते रहो , कूदते रहो . मन बार-बार कहेगा कि बस करो , अब बहुत थक गए . मन पर ध्यान ही मत दो . तब तक घूमना जारी रखो जब तक महसूस न हो-- विचारणा नहीं , महसूस करना महत्वपूर्ण है-- कि शरीर बिलकुल थक गया है और अब एक कदम भी उठाना संभव न होगा और यदि उठाऊंगा तो गिर जाऊंगा . जब तुम अनुभव करो कि अब गिरा तब गिरा , अब आगे चला नहीं जा सकता , शरीर भारी और थककर चूर-चूर हो गया है , " तब , जमीन पर गिरकर , इस गिरने में पूर्ण होओ . " तब गिर जाओ . ध्यान रहे कि थकना इतना हो कि गिरना अपने आप ही घटित हो . अगर तुमने दौड़ना जारी रखा तो गिरना अनिवार्य है . जब यह चरम बिंदु आ जाए , तब -- सूत्र कहता है-- गिरो और इस गिरने में पूर्ण होओ . इस विधि का केन्द्रीय बिंदु यही है : जब तुम गिर रहे हो , पूर्ण होओ . इसका क्या अर्थ है ? पहली बात यह है कि मन के कहने से ही मत गिरो . कोई आयोजन मत करो . बैठने की चेष्टा मत करो , लेटने की चेष्टा मत करो . पूरे के पूरे गिर जाओ , मानो कि पूरा शरीर एक है और वह गिर गया है . ऐसा न हो कि तुमने उसे गिराया है .अगर तुमने गिराया है तो तुम्हारे दो हिस्से हो गए , एक गिराने वाले तुम हुए और दूसरा गिराया हुआ शरीर हुआ . तब तुम पूर्ण न रहे , खंडित और विभाजित रहे . उसे अखंडित गिरने दो ; अपने को समग्रतः गिरने दो .
बस वर्तुल में घूमो . कूदो , नाचो , दौड़ो , जब तक थक न जाओ घुमते रहो . यह घूमना तब तक जारी रहे जब तक ऐसा न लगे कि और एक कदम उठाना असंभव है . लेकिन यह खयाल रखो कि मन कह सकता है कि अब पूरी तरह थक गए . मन की बिलकुल मत सुनो . चलते चलो , दौड़ते रहो , नाचते रहो , कूदते रहो . मन बार-बार कहेगा कि बस करो , अब बहुत थक गए . मन पर ध्यान ही मत दो . तब तक घूमना जारी रखो जब तक महसूस न हो-- विचारणा नहीं , महसूस करना महत्वपूर्ण है-- कि शरीर बिलकुल थक गया है और अब एक कदम भी उठाना संभव न होगा और यदि उठाऊंगा तो गिर जाऊंगा . जब तुम अनुभव करो कि अब गिरा तब गिरा , अब आगे चला नहीं जा सकता , शरीर भारी और थककर चूर-चूर हो गया है , " तब , जमीन पर गिरकर , इस गिरने में पूर्ण होओ . " तब गिर जाओ . ध्यान रहे कि थकना इतना हो कि गिरना अपने आप ही घटित हो . अगर तुमने दौड़ना जारी रखा तो गिरना अनिवार्य है . जब यह चरम बिंदु आ जाए , तब -- सूत्र कहता है-- गिरो और इस गिरने में पूर्ण होओ . इस विधि का केन्द्रीय बिंदु यही है : जब तुम गिर रहे हो , पूर्ण होओ . इसका क्या अर्थ है ? पहली बात यह है कि मन के कहने से ही मत गिरो . कोई आयोजन मत करो . बैठने की चेष्टा मत करो , लेटने की चेष्टा मत करो . पूरे के पूरे गिर जाओ , मानो कि पूरा शरीर एक है और वह गिर गया है . ऐसा न हो कि तुमने उसे गिराया है .अगर तुमने गिराया है तो तुम्हारे दो हिस्से हो गए , एक गिराने वाले तुम हुए और दूसरा गिराया हुआ शरीर हुआ . तब तुम पूर्ण न रहे , खंडित और विभाजित रहे . उसे अखंडित गिरने दो ; अपने को समग्रतः गिरने दो .
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