विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 28
[ " कल्पना करो कि तुम धीरे-धीरे शक्ति या ज्ञान से वंचित किये जा रहे हो . वंचित किये जाने के क्षण में , अतिक्रमण करो ."]
इस विधि का उपयोग किसी यथार्थ स्थिति में भी किया जा सकता है और तुम ऐसी स्थिति की कल्पना भी कर सकते हो . उदाहरण के लिए , लेट जाओ , शिथिल हो जाओ , और भाव करो कि तुम्हारा शरीर मर रहा है . आंखें बंद कर लो और भाव करो कि मैं मर रहा हूँ . जल्दी ही तुम महसूस करोगे कि मेरा शरीर भारी हो रहा है . भाव करो : " मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ ." अगर भाव प्रामाणिक है तो तुम्हारा शरीर भारी होने लगेगा . तुम्हें महसूस होगा कि मेरा शरीर पत्थर जैसा हो गया है . तुम अपने हाथ हिलाना चाहोगे , लेकिन हिला नहीं पाओगे ! क्योंकि वह इतना भारी और मुर्दा हो गया है . भाव किये जाओ कि मैं मर रहा हूं , मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ . और जब तुम्हें मालूम हो कि अब वह क्षण आ गया है , एक छलांग और कि मैं मर जाऊंगा , तब शरीर को भूल जाओ और अतिक्रमण करो . जब तुम अनुभव करते हो कि शरीर मृत हो गया है , तब अतिक्रमण करने का क्या अर्थ है ? शरीर को देखो . अब तक तुम भाव कर रहे थे कि मैं मर रहा हूं . अब शरीर मृत बोझ बन गया है . शरीर को देखो . भूल जाओ कि मर रहा हूं , और अब दृष्टा हो जाओ . शरीर मृत पड़ा है और तुम उसे देख रहे हो . अतिक्रमण घटित हो जायेगा . तुम अपने मन से बाहर निकल जाओ ; क्योंकि मृत शरीर को मन की जरुरत नहीं है . मृत शरीर इतना विश्राम में होता है कि मन कि प्रक्रिया ही ठहर जाती है . तुम हो , शरीर भी है ; लेकिन मन अनुपस्थित है . इस प्रयोग को प्रतिदिन करो . और इस सरल प्रक्रिया से बहुत कुछ घटित होता है .
इस विधि का उपयोग किसी यथार्थ स्थिति में भी किया जा सकता है और तुम ऐसी स्थिति की कल्पना भी कर सकते हो . उदाहरण के लिए , लेट जाओ , शिथिल हो जाओ , और भाव करो कि तुम्हारा शरीर मर रहा है . आंखें बंद कर लो और भाव करो कि मैं मर रहा हूँ . जल्दी ही तुम महसूस करोगे कि मेरा शरीर भारी हो रहा है . भाव करो : " मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ ." अगर भाव प्रामाणिक है तो तुम्हारा शरीर भारी होने लगेगा . तुम्हें महसूस होगा कि मेरा शरीर पत्थर जैसा हो गया है . तुम अपने हाथ हिलाना चाहोगे , लेकिन हिला नहीं पाओगे ! क्योंकि वह इतना भारी और मुर्दा हो गया है . भाव किये जाओ कि मैं मर रहा हूं , मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ , मैं मर रहा हूँ . और जब तुम्हें मालूम हो कि अब वह क्षण आ गया है , एक छलांग और कि मैं मर जाऊंगा , तब शरीर को भूल जाओ और अतिक्रमण करो . जब तुम अनुभव करते हो कि शरीर मृत हो गया है , तब अतिक्रमण करने का क्या अर्थ है ? शरीर को देखो . अब तक तुम भाव कर रहे थे कि मैं मर रहा हूं . अब शरीर मृत बोझ बन गया है . शरीर को देखो . भूल जाओ कि मर रहा हूं , और अब दृष्टा हो जाओ . शरीर मृत पड़ा है और तुम उसे देख रहे हो . अतिक्रमण घटित हो जायेगा . तुम अपने मन से बाहर निकल जाओ ; क्योंकि मृत शरीर को मन की जरुरत नहीं है . मृत शरीर इतना विश्राम में होता है कि मन कि प्रक्रिया ही ठहर जाती है . तुम हो , शरीर भी है ; लेकिन मन अनुपस्थित है . इस प्रयोग को प्रतिदिन करो . और इस सरल प्रक्रिया से बहुत कुछ घटित होता है .
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