विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 82
[ " यह काल्पनिक जगत जलकर राख हो रहा है , यह भाव करो ; और मनुष्य से श्रेष्ठतर प्राणी बनो ." ]
अगर तुम संसार को जलता हुआ देख सके तो तुम मनुष्य के ऊपर उठ गए , तुम अतिमानव हो गए . तब तुम अतिमानवीय चेतना को जान गए .
जो लोग बहुत भाव-प्रवण हैं वे कुछ भी कल्पना कर सकते हैं , और वह घटित होगा . और एक बार उन्हें यह प्रतीति हो जाए कि कल्पना यथार्थ हो सकती है , कि भाव वास्तविक बन सकता है , तो उन्हें आश्वासन मिल गया और वे आगे बढ़ सकते हैं . तब तुम अपने भाव के द्वारा बहुत कुछ कर सकते हो . तुम अभी भी भाव से बहुत कुछ करते हो , लेकिन तुम्हें पता नहीं है . तुम अभी भी करते हो , लेकिन तुम्हें उसका बोध नहीं है .
शहर में कोई नया रोग फैलता है , फ्रेंच फ्लू फैलता है , और तुम उसके शिकार हो जाते हो . तुम कभी सोच भी नहीं सकते कि सौ में से सत्तर लोग सिर्फ कल्पना के कारण बीमार हो जाते हैं . चूंकि शहर में रोग फैला है , तुम कल्पना करने लगते हो कि मैं भी इसका शिकार होने वाला हूं-- और तुम शिकार हो जाओगे . तुम सिर्फ अपनी कल्पना से अनेक रोग पकड़ लेते हो . तुम सिर्फ अपनी कल्पना से अनेक समस्याएं निर्मित कर लेते हो . तो तुम समस्याओं को हल भी कर सकते हो , यदि तुम्हें पता हो कि तुमने ही उन्हें निर्मित किया है . अपनी कल्पना को थोड़ा बढाओ , और अब यह विधि बहुत उपयोगी होगी .
अगर तुम संसार को जलता हुआ देख सके तो तुम मनुष्य के ऊपर उठ गए , तुम अतिमानव हो गए . तब तुम अतिमानवीय चेतना को जान गए .
जो लोग बहुत भाव-प्रवण हैं वे कुछ भी कल्पना कर सकते हैं , और वह घटित होगा . और एक बार उन्हें यह प्रतीति हो जाए कि कल्पना यथार्थ हो सकती है , कि भाव वास्तविक बन सकता है , तो उन्हें आश्वासन मिल गया और वे आगे बढ़ सकते हैं . तब तुम अपने भाव के द्वारा बहुत कुछ कर सकते हो . तुम अभी भी भाव से बहुत कुछ करते हो , लेकिन तुम्हें पता नहीं है . तुम अभी भी करते हो , लेकिन तुम्हें उसका बोध नहीं है .
शहर में कोई नया रोग फैलता है , फ्रेंच फ्लू फैलता है , और तुम उसके शिकार हो जाते हो . तुम कभी सोच भी नहीं सकते कि सौ में से सत्तर लोग सिर्फ कल्पना के कारण बीमार हो जाते हैं . चूंकि शहर में रोग फैला है , तुम कल्पना करने लगते हो कि मैं भी इसका शिकार होने वाला हूं-- और तुम शिकार हो जाओगे . तुम सिर्फ अपनी कल्पना से अनेक रोग पकड़ लेते हो . तुम सिर्फ अपनी कल्पना से अनेक समस्याएं निर्मित कर लेते हो . तो तुम समस्याओं को हल भी कर सकते हो , यदि तुम्हें पता हो कि तुमने ही उन्हें निर्मित किया है . अपनी कल्पना को थोड़ा बढाओ , और अब यह विधि बहुत उपयोगी होगी .
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