Osho Hindi Pdf- Nav Sannyas नव-संन्यास
नव-संन्यास
आमुख
एक संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है, जिससे हम सब भली भांति परिचित है। उसका अभिप्राय कुल इतना है कि आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर | वह संन्यास तो त्याग का दूसरा नाम है, वह जीवन से भगोड़ापन है, पलायन है। और एक अर्थ में अ सान भी है-अब है कि नहीं, लेकिन की अवश्य आसान था। भगवे वस्त्रधारी संन्यासी वी पूजा होती थी। उसने भगवे वस्त्र पहन लिए, उसवी पूजा के लिए इतना पर्याप्त था। वह दरअसल उसी नहीं, उसके वस्त्रों वी ही पूजा ४ी। व ह संन्यास इसलिए भी आसान था कि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार वी सब समस्याओं से मुक्त हो गए। क्योकि समस्याओं से कौन मुक्त नहीं होना चाहता? लेकिन जो लोग संसार से भागने वी अथवा संसार को त्यागने की हिम्मत न जु टा सके, मोह में बंधे रहे, उन्हें त्याग का यह कृत्य बहुत महान लगने लगा, वे ऐसे संन्यासी की पूजा और सेवा करते रहे और संन्यास के नाम पर परनिर्भर ता का यह कार्य चलता रहा : संन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसानी पर नि भर रहा और तथाकथित त्यारी भी बना रहा। लेकिन ऐसा संन्यास आनंद न व न सका, मस्ती न बना सका। दीन-हीनता में कहीं कोई प्रफुल्लता होती है? पर जीटी की प्रमुदित हो सकते हैं? धीरे-धीरे संन्यास पूर्णतः सड़ गया। संन्यास से वे बांसुरी के गीत खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय की गूंजे होंगे-संन्य स के मालिक रूप में।
अथवा राजा जनक के समय संन्यास ने जो गहराई छुई ही, वह संसार में कमल वी भांति खिलकर जीनेवाला संन्यास नदारद हो गया। वर्तमान समय में ओशो ने सम्यक संन्यास को पुनरुज्जीवित किया है। ओशो ने पुन: उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण वी बांसुरी, मीरा के धुंघरू और कटीर वी मस्त ही है। संन्यास पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संर पर्श से हुआ है। इसलिए यह नव-संन्यास है| इस अनूटी प्रवचनमाला के माध्यम से संन्यास के अभिनव आयाम में आपको निमंत्रण है। स्वामी चैतन्य वीर्ति संपादक : ओशो टाइम्स इंटरनेशनल नव-संन्यास का सूत्रपात संन्यास मेरे लिए त्याग नहीं, आनंद है| संन्यास निषेध भी नहीं है, उपलब्धि है।
लेकिन आज तक पृथ्टी पर संन्यास को निषेधात्मक अर्थों में ही देखा गया हैत्याग के अर्थों में, छोड़ने के अर्थों में पाने के अर्थ में नहीं। मैं संन्यास को देख ता हूं पाने के अर्थ में। निश्चित ही जब कोई हीरे-जवाहरात पा लेता है तो कं कड़-पत्थरों को छोड़ देता है। लेकिन कंकड़-पत्थरों को छोड़ने का अर्थ इतना ह है कि हीरे-जवाहरातों के लिए जगह बनानी पड़ती है। कंकड़-पत्थरों का त्या.....................................
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