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    Osho Hindi Pdf- Naam Sumir Man नाम सुमिर मन बावरे

    Osho Hindi Pdf- Naam Sumir Man

    नाम सुमिर मन बावरे

    पहला प्रवचनतुमसों मन लागो है मोरातुमसों मन लागो है मोरा। 
    हम तुम बैठे रही अटरिया, भला बना है जोरा।। 
    सत वी सेज बिछाय सूति रहि, सुख आनंद घनेरा। 
    करता हरता तुमही आहहु, क्रौं मैं कौन निहोरा।। 
    रह्यो अजान अब जानि परयो है, जब चितयो एक कोरा। 
    आवागमन निवारहु सांइट, आदि-अंत का आहिऊं चोरा। 
    जगजीवन बिनती करि मांगे, देखत दरस सदा रहों तोरा।। 
    अब निर्वाह किए बनि आइहि लाय प्रीति हि तोरिय डोरा।। 
    मन महं जाइ फकीरी करना। 
    रहे एक्त तत तें लागा, राग निर्त नहिं सुनना।। 
    कथा चारचा पढ़े-सुनै हिं, नाहिं बहुत बक बोलना। 
    ना थिर रहै जहां तह धावै, यह मन अहै हिंडोलना।। 
    मैं तो गर्व गुमान बिबादंहि, सबै दूर यह करना। 
    सीतल रीन रहै मरि अंत्र, गहै नाम वी सरना।। 
    जल पषान की करै आस हि, आहे सकल भरमना। 
    जगजीवनदास निहारि निरखिकै, गहि रहु गुरु की सरना।। 
    भूलु फूलु सुख र नहीं, अबहूं होहु सचेत। 
    साइट पठवा तोहि का, लावो तेहि ते हेत।। 
    तजु आसा सब झूठ ही, संग साथी नहिं कोय। 
    केउ केहू न उबारिही, जेहि र होय सो होय।। 
    कहवां तें चलि आयहू, कहां रहा अस्थान। 
    सो सुधि बिसरि गई तोहिं, अब कस भयसि हेवान।। 
    काया-नगर सोहावना, सुख तबहीं पै होय। 
    रमत रहै तेहि भीतरे, दुःख नहीं व्यापै कोय।। 
    मृत-मंडल कोउ थिर नहीं, आवा सो चलि जाय। 
    गाफिल ह्वै फंदा परयौ, जहं-तह गयो बिलाय।। 

    एक नई यात्रा पर निकलते हैं आज! बुद्ध का, कृष्ण का, क्राइस्ट का मार्ग तो राजपथ है।  राजपथ का अपना सौंदर्य है, अपनी सुविधा, अपी सुरक्षा।  सुंदरदास, दादूदयाल या अब जिस यात्रा र हम चल रहे हैं—जगजीवन साहब–इनके रास्ते पगडंडियां हैं। पगडंडियों का अपना सौंदर्य है। पहुंचाते तो राजपथ भी उसी शिखर पर हैं जहां पगडंडियां पहुंचारी हैं। राजपथों पर भीड़ चलती है; बहुत लोग चलते हैं- हजारों, लाखों, करोड़ों। पगडंडियों पर इक्के-दुक्के लोग चलते हैं। पगडंडियों के कष्ट भी हैं, चुनौतियां भी हैं। पगडंडियां छोटे-छोटे मार्ग हैं। 

    पहाड़ वी चढ़ाई करनी हो, दोनों तरह से हो सकती है। लेकिन जिसे पगडंडी पर चढ़ने का मजा आ गया वह राजपथ से बचेगा। अकेले होने का सौंदर्य- वृक्षों के साथ, पक्षियों के साथ, चांद-तारों के साथ, झरनों के साथ राजपथ उन्होंने निर्माण किए हैं जो बड़े विचारील लोग थे। राजपथ निर्माण करना हो तो अत्यंत सुविचारित ढंग से ही हो सकता है। पगडंडियां उन्होंने निर्मित की हैं, जो न तो पढ़े-लिखे थे, न जिनके पास विचार वी कोई व्यवस्था थी-अपढ़; जिन्हें हम कहें गंवार; जिन्हें काला अक्षर भैंस बराबर था।लेकिन यह स्मरण रखना कि परमात्मा को पाने के लिए ज्ञानी को ज्यादा कठिनाई पड़ती है। बुद्ध को ज्यादा कठिनाई पड़ी। सुशिक्षित थे, सुसंस्कृत थे। शास्त्र वी छाया थी ऊपर बहुत। सम्राट् के बेटे थे। जो श्रेष्ठतम शिक्षा उपल्ब्ध हो सकी थी, उपल्ब्ध हुई थी। उरी शिक्षा को काटने में वर्षों लग गए। उसी शिक्षा से मुवत होने में बड़ा श्रम उठाना पड़ा।बुद्ध छह वर्ष तक जो तपश्चर्या किए, उस तपश्चर्या में शिक्षा के द्वारा डाले गए संस्कारों को काटने वी ही योजना थी। महावीर बारह वर्ष तक मौन रहे। उस मौन में जो शब्द सीखे थे, सिखाए गए थे उन्हें भुलाने का प्रयास था। बारह वर्षों के सतत मौन के बाद इस योग्य हुए कि शब्द से छुटकारा हो सका।और जहां...................

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