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    पाइयो रे पाइबो रे ब्रह्मज्ञान - ओशो

    Payo Re Payo Re Brahma Gyan - Osho


    पाइयो रे पाइबो रे ब्रह्मज्ञान - ओशो 

            यह महानतम तुम्हें आनंद दिखाई पड़े, भला उस आदमी में पांडित्य भी न हो, तो भी तुम पीछे उस आदमी के दौड़ना उसके पास कोई सुवास है और भला कोई आ दमी कितने ही ज्ञान से भरा हो और उसके चेहरे पर और उसकी आंखों में तुम्हें आ नंद की पुलक, रहस्य का भाव , कुछ ऐसे महत्वपूर्ण को पाने की प्रतीति न हो, जो शब्दों में कहा नहीं जा सकता, कुछ ऐसी मूढ़ता का बोध न हो, जो हृदय में तो त लाबल है, लेकिन शब्द उसे बाहर नहीं ला पाते, लेकिन बैठ कर तुम्हें किसी शांत झील का अनुभव हो, जिसके पास आकर तुम्हें सूर्य के प्रकाश का अनुभव हो, जिस के पास बैठ कर तुम्हें चांद की शीतलता मिले, अपरिचित फूलों की गंध ओ, जिसके पास अनजान वीणा बजने लगे, तुम्हारे हृदय के तार भी जिसे दोहराने लगे। 

            क्या तुम्हें पता है? संगीतज्ञ एक बड़े अनूठे अनुभव को कहते हैं एक वीणा को रख दिया जाए कक्ष के एक कोने में, कोई छूए भी न; और कुशल संगीतज्ञ दूसरी वीण । पर गीत बजाए, राग उठाए तो तुम्हें पता है, एक अनूठी घटना घटती है कि पह ली वीणा जो कोने में रखी है, धीरे धीरे उसी धन को बजाने लगती है मगर बड़ा । कुशल संगीतज्ञ चाहिए एक वीणा तो वह बजाता है उससे उठती हुई झंकार दूसरी वीणा के तारों को छती है। उससे उठती हुई स्वर लहरी दूसरी वीणा पर चोट कर ती है। धीरे-धीरे दसरी वीणा के तार भी कंपायमान होने लगते हैं। एक धीमी सिहर न उन में दौड़ जाती है। 

            तानसेन या बैजू बावरा जैसे संगतज्ञों के संबंध में कथाएं हैं, कि दूसरी वाणी ठीक वही दोहराने लेती है, जो पहली बीणा कर रही है। और अब तो इस पर वैज्ञानिक शोध हुई है और पाया गया कि यह सच है इसे वेज निक कहते हैं, ला आफ सिंक्रोनिसिटी अगर एक चीज बज रही हो एक ढंग से, त । सके चारों तरफ तरंगों का एक जाल पैदा होता है। उस जाल में उसके समान-ध र्मा कोई भी मौजूद हो, तो उसके भीतर भी उसी तरह की ध्वनि कंपित होने लगती ज्ञानी तो वही है, जिसके पास बैठने से तुम्हारे हृदय की वीणा कंपित होने लगे उसका स्वर जाग गया। उसकी वीणा बज रही है, अनंत अनंत हाथों से परमात्मा उस की वीणा पर खेल रहा है। तुम उसके पा जाआगे, तुम्हारे हृदय के तार झंकृत होने लगेंगे यह कोई वृद्धि का संबंध न होगा यह एक हार्दिक संबंध होगा। इसका ताल मेल प्रेम से ज्यादा होगा, ज्ञान से कम होगा इसका तालमेल श्रद्धा से ज्यादा होगा, सोच-विचार से कम होगा समान-धर्मा तुम्हारी आत्मा भी कंपित होने लगेगी तुम्हा रे भीतर की वीणा भी जागेगी, हिलेगी, उठेगी। गुरु वही है, जिसके पास शिप्य रूपांतरित होने लगे.

     - ओशो

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