तुम्हारी लाई गई समाधि चेष्टित, कितनी ही तम्हें शांत कर दें, तुम्हें पुलक और आनंद से नहीं भरी सकेगी - ओशो
तुम्हारी लाई गई समाधि चेष्टित, कितनी ही तम्हें शांत कर दें, तुम्हें पुलक और आनंद से नहीं भरी सकेगी - ओशो
समाधियां दो तरह की हैं। एक तो समाधि है जो चेष्टा से घटती है, प्रयास से घटत ी है, आयोजन से घटती है, यत्न श्रम से घटती है। ऐसी समाधि को पूरी समाधि न हीं कहा जा सकता। क्यों? क्योंकि तुम्हारे प्रयास से जो घटी है उसमें तुम्हारा कुछ न कुछ बाकी रह ही जाएगा तुम्हारा प्रयास तुमसे ऊपर कैसे जा सकता है? तुमने जो किया, उसमें तुम्ह गरी छाया रह ही जाएगी। तुम्हारे हस्ताक्षर उसमें मौजूद रहेगे ही तुम्हारा प्रयास तुम ही हों तो तुम्हारे प्रयास से आई समाधि, तुमसे पार नहीं जा सकती वह परमात्मा तक नहीं पहुंच सकती।
एक तो समाधि है, जो प्रयत्न से फलित होती है। हां, तुम थोड़े शांत हो जाओगे तुम थोड़े तनाव से मुक्त हो जाओगे तुम्हें नींद ठीक आने लगेगी तुम्हारे जीवन में थोड़ा संतुलन आ जाएगा भटकाव कम हो जाएगा व्यर्थ की बातों में तुम कम उ लझागे लोभ, क्रोध तुम्हें कम आकर्षित करेंगे काम-वासना वसी प्रगाढ़ न रह जाए गी, जैसी पहले थी लेकिन फिर भी माडिफर्ड, थोड़े से रूपांतरित-रहोगे तुम पुराने ही जैसे कोई पुराने मकान को रिनोवेशन कर लेता है। पुराने मकान को थोड़ा टीमटाम सजा लेता है। जरा जीर्ण मकान को यहां वहां ठीक-ठाक करके, थोड़े नए पत्थर जो डकर, थोड़ी दीवालों को नया पोत कर, रंग रोगन लगा कर, नये का ढंग दे देता है । लेकिन भीतर तो जराजीण मकान, जराजीणं ही रहेगा। यल से जो समाधि आती है, वह ऐसी है जैसे किसी ने जराजीर्ण मकान का पुनरुद्धा र कर लिया। वह नया भवन नहीं है। उसका पूराने से संबंध नहीं टूटा सातत्य जार ।
रहा वह पुराने का ही सिलसिला है उसे तुमने कितना ही संवार लिया हो, भीत र से वह जीरा जीर्ण ही है। पुराना बिलकुल टूट जाए और समग्र रूपेण नये का जन्म हो सिलसिला ही टूट जाए , सातत्य ही टूट जाए पुराने और नये के बीच कोई जोड़ ही न बचे इधर पुराना गया, उधर नया आया दोनों के बीच कोई संबंध न हो तभी समाधि परम होगी। लेकिन वैसी समाधि तुम कैसे लाआगे? क्योंकि तुम लाओगे, तो तुम्हारा सातत्य जारी रहेगा तुम्हारी समाधि, लाई गई समाधि चेष्टित, कितनी ही तम्हें शांत कर दें, तुम्हें पुलक और आनंद से नहीं भरी सकेगी क्योंकि आनंद तो परमात्मा का है मन प्य की गहनतम से गहनतम संभावना शांत होने की उससे ऊपर मनुष्य नहीं जा स कता और वैसी शांति कभी भी खंडित हो सकती है क्योंकि जिसे आनंद न मिला हो, उ सकी शांति का बहुत भरोसा नहीं है क्योंकि शांति एक नकारात्मक स्थिति है। अशां त तुम कम हो गए हो, इसलिए शांत लगते हो लेकिन प्रकाश नहीं जला है। आनंद की वर्षा नहीं हुई ।
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