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    Osho Hindi Pdf- Udaipur Camp उदयपुर केम्प


    Osho Hindi Book- Udaipur Camp  उदयपुर केम्प


    उदयपुर केम्प


    मेरे प्रिय आत्मन् एक छोटी सी कहानी से होने वाले तीन दिनों की चर्चाओं का मैं प्रारंभ करूंगा। एक युवा फकीर सारी पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकला। उसने सारी जमीन घुमी, पहाड़ों और रेगिस्तानों में, गांव और राजधानियों में, दूर-दूर के देशों में वह भटका और घूमा। और फिर सारे जगत का भ्र मण करके अपने देश वापिस लौटा। जब यात्रा पर निकला था, तो जवान था, जब वापिस आया तो बूढ़ा हो चुका था। अपने देश के राजधानी में आने पर उसका बड़ा स्वागत हुआ। उस देश के राजा ने उसके चरण छुए। और उससे कहा कि धन्य है, हमारा भाग्य कि तुम हमारे बीच पैदा हुए। और तुमने मेरी सुगंध को सारी दुनिया में पहुंचाया। तुम्हारी कीर्ति के साथ हमारी कीर्ति गई। तुम्हारे शब्दों के स थि हमने जो हजारों वर्षों में संग्रहीत किया था। वह लोगों तक पहुंचा। और मैं भी एक प्रतीक्षा कए तुम्हारी राह देख रहा हूं। अनेक बार मेरे मन में यह खयाल उठा है। कि मेरा मित्र और मे रे देश का भान्य जब सारी दुनिया से घूमकर लौटेगा, तो शायद मेरे लिए कुछ भेंट भी लाए। श यिद सारी दुनिया में कुछ उसने खोजा हो जो मेरे काम का हो। तो मैं बड़ी आशा से तुम्हारी प्र तीक्षा कर रहा हूं। मेरे लिए क्या लाए हो, वह फकीर और वह राजा बचपन के मित्र थे। वे ए क ही स्कूल में पढ़े थे, राजा बड़ा सम्राट हो गया था। उसने अपने रा य की सीमाएं बहुत बढ़ा ली थी। 

    और उसका मित्र फकीर भी सारी दुनिया में यश और कीर्ति अर्जित करके लौटा था। करोड़ों-कर ड़ों लोगों ने उसे सम्मान दिया था और दुनिया का कोई कोना न था। जहां उसके चरण और उ सकी वाणी न पहुंची हो। उस उस राजा ने कहा कि मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं कि मेरे लिए क्या में ट लाए हो। वह फकीर बोला-मैने भी यह सोचा था कि जरूर घर लौटकर यह बात पूछी जाएग

    और जरूर ही तुम कहोगे, कि क्या लाए मेरे लिए। और मैने दुनिया में बहुत सी चीजें देखी है। और मैंने सोचा कि उन चीजों को मैं ले चलूं। लेकिन हर चीज लाते वक्त मुझे खयाल आया। य है तो तुम्हारे पास पहले से ही मौजूद होगी। तुम्हारे पास कौन सी चीज की कमी है। तुमने दूरदूर के देश जीत लिए है। तुम्हारे महलों में सारी दुनिया की संपदा आ गई। तुम्हारे पास कौन स 1 चीज की कमी होगी जो मैं ले चलूं। आखिर में थक गया, और मुझे कोई चीज ऐसी न मालूम पड़ी जो तुम्हारे महलों में न पहुंच चुकी हो। जिसके तुम मालिक न बन चुके हो, बहुत सोचकर एक चीज जरूर मैं ले आया हूं। लेकिन अकेले में और एकांत में उस चीज को मैं तुम्हें दूंगा। उ स फकीर के पास कुछ दिखाई भी न पड़ता था, एक छोटा सा झोला था, जो उसके कंधे पर ल टका था। उसमें क्या हो सकता था। ऐसी कौन सी चीज हो सकती थी जो राजा के पास न हो, क्योंकि फकीर ने खुद ही कहा कि मैं उन सारी चीजों को छोड़ आया हूं। जिनका मुझे खयाल पै दा हुआ कि तुम्हारे पास पहले से होंगे। उस फटे से झोले में क्या हो सकता था। 

    बड़ी उत्सुकता और आकांक्षा से वह राजा उसे अपने म हलों में ले गया। सारे लोग जब पीछे छूट गए, उसने उस फकीर से फिर कहा कि निकालें। दिखओ मुझे क्या ले आए हैं मेरे लिए? उस फकीर ने जो निकाला, आप भी नहीं सोच सकते कि उसने क्या लाया होगा। वह एक बड़ी सस्ती सी और बड़ी अनूठी चीज ले आया था। उसने अपने
    झोले में से यूं निकाला, बड़ी साधारण सी चीज थी। एक छोटा सा आईना था, एक छोटा सा दर्पण था चार पैसे का, और उसने उस राजा को वह दर्पण दिया। राजा ने उसे उलट-पलट कर देखा उसने कहा क्या? यह दर्पण ले आए हो, उस फकीर ने कहा-यह मुझे सबसे कठिन चीज म लूम पड़ी जो राजाओं के पास नहीं होती। इसमें तुम खुद को देख सकोगे। और दुनिया में बहुत कम लोग है जो खुद को देखने में समर्थ होते हैं। .........

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