Osho Hindi Pdf- Ajhoon Chet Ghawar अजहू चेत गंवार
अजहू चेत गंवार
आमुख
तू एक था मेरे अशआर में हजार हुआ
इस एक चिराग से कितने चिराग जल उठे
संत सुंदरदास ने उजाले वी इस यात्रा को 'ज्योति से ज्योति जले' कहा है। इस पृथ्टी पर एक व्यक्ति का दीया जलता है, पूरी पृथ्टी उसवी ज्योति से प्रकाशि त होने लगती है; एक व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तो हजारों लोगों के ज वन में संबोधि की रसधार प्रवाहित होने लगती है। ओशो कहते हैं कि और फिर यह श्रृंखला रुकती नहीं। इसी श्रृंखला से वस्तुतः परंपरा पैदा होती है। सच्ची परंप रा इसी श्रृंखला का नाम है। एक झूटी परंपरा होती है जो जन्म से मिलती है। तुम हिंदू घर में पैदा हुए तो तुम मानते हो मैं हिंदू हूं। यह झूटी परंपरा है। . .
एक परंपरा है ज्योति वी-जो शुद्ध अर्थों में, अप्रदूषित अर्थों में परंपरा है। ओशो उसी परंपरा वी देशना दे रहे हैं। वे कहते हैं : 'एक जीवंत परंपरा होती है। एक हीये से दूसरा दीया जलता है-एक श्रृंखला पैदा होती है। जब तुम किसी सद् गुरु को खोज कर उसके पास पहुंचते हो और तुम्हारे भीतर समर्पण घटित होता है, तब तुम एक परंपरा के अंग बन जाते हो। यह वास्तविक धर्म का जन्म है।' तथागत बुद्ध का रीया जला, हजारों शिष्य उनके साथ प्रदीप्त हुए। उनका आलोक पृथ्टी के कोने-कोने तक पहुंचा और वह प्रकाश आज भी झेन की सरिता बन प्रव हमान है।
ओशो का संबोधि-कमल खिला, हजारों संन्यासी उस संबोधि-सुवास से सुरभित हुए और यह सुरभि का कारवां एक वैश्विक समारोह बन गया है। आज हजारों लोग संबोधि-सुरभि के अमृत-पथ पर अग्रसर हो गए हैं।
तू एक था मेरे अशआर में हजार हुआ
इस एक चिराग से कितने चिराग जल उठे
स्वामी चैतन्य कीर्ति
संपादक : ओशो टाइमस इंटरनेशनल
नाब मिही केवट नहीं, कैसे उतरै पार||
कैसे उतरै पार पथिक विश्वास न आवै|
लगै नहीं वैराग यार कैसे कै पावै।।
मन में धरै न म्यान, नहीं सतसंगति रहनी।
बात करै नहिं कान, डीति बिन जैसी कहनी।।
कैसे उतरै पार पथिक विश्वास न आवै|
लगै नहीं वैराग यार कैसे कै पावै।।
मन में धरै न म्यान, नहीं सतसंगति रहनी।
बात करै नहिं कान, डीति बिन जैसी कहनी।।
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