Osho Hindi Pdf- Ami Jharat Bigsat Kanwal अभी झरत बिगसत कंवल
अभी झरत बिगसत कंवल
जिसे अनिर्वचनीय का बोध हो वह क्या करें? कैसे कहे? अकथ्य को कैसे कथन बनाए? जो निकटतम संभावना है, वह है कि गाये, नाचे, गुनगुनाए। इकतारा बजाए कि ढोलक पर थाप दे, कि पैरों में धुंघरू बांधे, कि बांसुरी पर अनिर्वचनीय को उठाने की असफल चेष्टा करे। इसलिए संतों ने गीतों में अभिव्यक्ति की है। नहीं कि वे कवि थे, बल्कि इसलिए कि कविता करीब मालूम पड़ती है। शायद जो गद्य में न कहा जा सके, पद्य में उसकी झलक आ जाए। जो व्याकरण में न बंधता हो, शायद संगीत में थोड़ा-सा आभास दे जाए। इसे स्मरण रखना। संतों को कवि ही समझ लिया तो भूल हो जाएगी। संतों ने काव्य में कुछ कहा है, जो काव्य के भी अतीत है--जिसे कहा ही नहीं जा सकता।
निश्चित ही गद्य की बजाए पद्य को संतों ने चुना, क्योंकि गद्य और भी दूर पड़ जाता है, गणित और भी दूर पड़ जाता है। काव्य चुना, क्योंकि काव्य मध्य में है। एक तरफ व्याख्या-विज्ञान का लोक है, दूसरी तरफ अव्याख्य-धर्म का जगत है; और काव्य दोनों के मध्य की कड़ी है। शायद इस मध्य की कड़ी से किसी के हृदय की वीणा बज उठे, इसलिए संतों ने गीत गाए। गीत गाने को नहीं आए; तुम्हारे भीतर सोए गीत को जगाने को गाए। उनकी भाषा पर मत जाना, उनके भाव पर जाना। भाषा तो उनकी अटपटी होगी। जरूरी भी नहीं कि संत सभी पढ़े-लिये थे, बहुत तो उनमें गैर पढ़े-लिखे थे।
लेकिन पढ़े-लिखे होने से सत्य का कोई संबंध भी नहीं है; गैर-पढ़े-लिखे होने से कोई बाधा भी नहीं है। परमात्मा दोनों को समान रूप से उपलब्ध है। सच तो यह है, पढ़े-लिखे के शायद थोड़ी बाधा हो, उसका पढ़ा-लिखा ही अवरोध बन जाए; गैर-पढ़ा-लिखा थोड़ा ज्यादा भोला, थोड़ा ज्यादा निर्दोष। उसके निर्दोष चित्त में, उसके भोले हृदय में सरलता से प्रतिबिंब बन सकता है। कम होगा विकृत प्रतिबिंब, क्योंकि विकृत करने वाला तर्क मौजूद न होगा। झलक ज्यादा अनुकूल होगी सत्य के, क्योंकि विचारों का जाल न होगा जो झलक को अस्तव्यस्त करे। सीधा-सीधा सत्य झलकेगा क्योंकि दर्पण पर कोई शिक्षा की धूल नहीं होगी। तो भाषा की चिंता मत करना, व्याकरण का हिसाब मत बिठाना। छंद भी उनके। ठीक हैं या नहीं, इस विवेचना में भी न पड़ना। क्योंकि यह तो चूकना हो जाएगा। यह तो व्यर्थ में उलझना हो जाएगा।
यह तो गए फूल को देखने और फूल के रंग और फूल के रसायन और फूल किस जाति का है और किस देश से आया है, इस सारे इतिहास में उलझ गए; और भूल ही गए कि फूल तो उसके सौंदर्य में है। गुलाब कहां से आया, क्या फर्क पड़ता है? ऐतिहासिक चित्त इसी चिंता में पड़ जाता है कि गुलाब कहां से आया! आया तो बाहर से है। उसका नाम ही कह रहा है। नाम संस्कृत का नहीं है, हिंदी का नहीं है। गुल का अर्थ होता है: फूल; आब का अर्थ होता है: शान। फूल की शान! आया तो ईरान से है, बहुत लंबी यात्रा की है। लेकिन यह भी पता हो कि ईरान से आया है गुलाब, तो गुलाब के सौंदर्य का थोड़े ही इससे कुछ अनुभव होगा! गुलाब शब्द की व्याख्या भी हो गई तो भी गुलाब से तो वंचित ही रह जाओगे। गुलाब की पंखुड़ियां तोड़ लीं,.............
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