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    Osho Hindi Pdf- Ari Main To Ram अरी मैं तो राम के रंग छवी

    Osho Hindi Pdf- Ari Main To Ram

    अरी मैं तो राम के रंग छवी

    प्यारे ओशो, 

    हम खुदा के तो कभी कायल नथे तुम्हें देखा तो खुदा याद आया। 
    शवूर सिजदा नहीं है मुझको, तू मेरे सिजदों वी लाज रखना यह सिर रे आस्तां से पहले, 
    किसी के आगे झुका नहीं है।

    और क्या कहूं, बस अब आप कुछ ऐसी तदबीर करें कि जिससे यह जो एक रीर-ए-तीमकश दिल में चुभा है, सीने के पार हो जाए। प्रश्न लिखने के बहाने ही आंसू बह निकले हैं। आप इसका जवाब देंगे तब भी खूब बहेंगे, नहीं देंगे, तब भी। क्या करूं, अब तो बरसात आ ही गई! पर पता नहीं बर का साथ कब होगा? होगा भी या नहीं?

    सत्संग का यही अर्थ है। जिस निमित्त परमात्मा की याद आ जाए, वही सत्संग है। सागर में उठते हुए तूफान को देखकर परमात्मा की याद आ जाए, तो वहीं सत्संग हो गया। आकाश में उगे चांद को देखकर याद आ जाए, तो वहीं सत्संग हो गया। जहां सत्य वी याद आ जाए, वहीं सत्य से संग हो जाता है।

    और परमात्मा तो सभी में व्याप्त है। इसलिए याद कहीं से भी आ सकती है किसी भी दिशा से। और परमात्मा तुम्हें सब दिशाओं से तलाश रहा है, खोज रहा है। कहीं से भी रंध मिल जाए, जरा सी संधि मिल जाए, तो उसका झोंका तुममें प्रवेश हो जाता है। 

    वृक्षों की हरियाली को देखकर, उगते सूरज को देखकर, पक्षियों के गीत सुनकर, पीहे वीपी कहां' वी आवाज सुनकर... । और अगर तुम गौर से सुनो तो हर आवाज में उसी वी आवाज है। तुम्हें अगर भेी आवाज में उसवी आवाज सुनाई पड़ी, तो उसका कारण यह नहीं है कि मेरी आवाज ही केवल उसवी आवाज है, उसका कुल कारण इतना है कि तुमने मेरी ही आवाज को गौर से सुना। सभी आवाजें उसवी हैं। जहां भी तुम शांत होकर, मौन होकर, खुले हृदय से सुनने को राजी हो जाओगे, वहीं से उसवी याद आने लगे। 

    ___ खुदा के कायल होना ही होगा, क्योंकि खुदा तो सब तरफ मौजूद है। आश्चर्य तो यही है कि कुछ लोग कैसे बच जाते हैं खुदा के कायल होने से? चमत्कार है कि परमात्मा से भरे इस अस्त्त्वि में कुछ लोग नास्तिक रह जाते हैं? उनके अंधेपन का अंत न होगा। वे बहरे होंगे। उनके हृदय में धड़कन न होती होगी। उनके हृदय पत्थर के बने होंगे। यह असंभव है! अगर कोई जरा आंख खोले तो चारों तरफ वही मौजूद है, उसी वी छवि है। मंदिरों और मस्जिदों में जाने की जरूरत इसीलिए पड़ती है कि हम अंधे हैं। अन्यथा जहां हो वही मंदिर है—खुली आंख चाहिए। थोड़े जाग्रत होकर जहां भी बैठ जाओगे, वहीं तुम उसवी वर्षा पाओगे। ब्रस ही रहा है। उसवी वर्षा अनवरत है।

    तुम कहते होहम खुदा के तो कभी कायल नथे तुम्हें देखा तो खुदा याद आया।

    इससे मेरा कुछ संबंध नहीं है। जिस ढंग से तुमने मुझे देखा, उसी ढंग से अब औरों को भी देखना शुरू करो। और तुम्हें जगह-जगह खुदा ही नजर आएगा और तुम कायल र कायल होते चले जाओगे। और एक दिन वह अपूर्व चमत्कार भी घटेगाः दर्पण के सामने खड़े अपनी तस्वीर देखोगे और खुदा दिखाई पड़ेगा। जिस दिन वह भी घट जाए, उस दिन जानना है कि यात्रा पूरी हुई—जिस दिन तुम्हें अपने में भी परमात्मा वी ही याद.......


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