• Latest Posts

    Osho Hindi Pdf- Dekh Kabira Roya देखा कबीरा रोया

    Osho Hindi Pdf- Dekh Kabira Roya

    देखा कबीरा रोया

    भूमिका
    ओशो वी प्रशंसा में कुछ भी कह पाना असंभव सा लगता है। घूम फिर कर दो ही शब्दों पर लौट आना पड़ता है कि ओशो अनूठे हैं, वे अपूर्व हैं। या उनकी प्रशंसा के लिए उन शब्दों को ज्यों का त्यों रख देना चाहिए जो उन्होंने कृष्ण, बुद्ध या कीर के लिए कहे हैं। 

    प्रस्तुत पुस्तक में भारत की समस्याओं से जुड़े ओशो के विचार आँखें खोल देने वाले है। जिस भी सोच-विचार वाले व्यवित ने इस प्रज्ञापुरुष के विचार सुने या पढ़े हैं वह एकही बार में नत मस्तक हो गया। उनका ही हो कर रह गया। वे करुणा के सागर हैं, उनवी करुणा का कोई अंत नहीं। लेकिन उनवी करणा में कहीं रीनता नीं। ओशो संपूर्णता से चोट करने वाले एक संन्यासी योद्धा हैं।

    आज से कीब बीस वर्ष पहले जब यह संन्यासी योद्धा अधर्म और असत्य के विरुद्ध युद्ध के मैदान में उतरा तो न्यस्त स्वार्थों के खेमों में हड़कंप मच गया। पंडितों पुरोहितों की बिग्घियां बंध गइ। मढ़ राजनीतिज्ञों के पौधों के मंचे से जमीन खिसकने लगी। उन्होंने पहला वार गांधीवाद पर किया-मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं है लेकिन आंखें रहते देश को राज अंधकार में जाते हुए देखना भी असंभव है। धार्मिक आदमी को उतनी कठोरता और जड़ता मैं नहीं जुटा पाता हूँ। देश रोज-रोज, प्रतिदिन नीचे उतर रहा है। उसकी सारी नैतिकता खो रही है, उसके जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, जो की सुंदर है, जो सत्य है, वह सभी कलुषित हुआ जा रहा है। इसके पीछे जानना और समझना जरूरी है कि कौन सी घटना काम करती है और चूंकि मैंने कहा कि गांधी के बाद नया युग प्रारंभ होता है, इसलिए गांधी से ही विचार करना जरूरी है।'

    -'गातीवारी कहते हैं कि उस पर विचार नहीं करना है। जो उन्होंने कहा है उसे वैसे मान लेना है। यह बात इतनी अंडी और खतरनाक है कि अगर इन सारी बातों को इसी तरह मान लिया गया तो गांधी की आत्मा की आकाश में करी हो तो रोएगी, क्योंकि गाली खुद अपनी जिंदगी में हर वर्ष अपनी भूलों को स्वीकार करते रहे और मानते रहे कि जो भूले हो गइ। उन्हें छोड़ देना है। अगर गांकी जिंदा होते तो इन बीस वर्षों में उन्होंने बहुत सी भूले ठीकार वी हो ।
    गाँधीवारी कहते हैं कि अब कोई भल पर ध्यान नहीं देना है। जो कहा गया है उसे चपचाप मान लेना है। यह अंधापन बहुत मंहगा सावित हुआ। बुद्ध और महावीर को अंधा मान लेने से, अंधापन मान लेने से इतना नुकसान नरी हो सकता है, क्योंकि बुद्ध और महावीर ने व्यक्तिगत मनुष्य के आत्मोत्कर्ष वी बात की है। हिंदुस्तान में गोली एक पहले। व्यक्ति थे, जिन्होंने सामाजिक उत्कर्ष का भी विचार किया है। बद्ध और महावीर को मान लेने से एक-एक व्यक्ति भटक सकता है, गांधी को अंधेपन से मान लेने से पूरे समाज का भविष्य भटक सकता है, पूरा देश भटक सकता है, इसलिए गांधी पर विचार कर लेना बहुत जरूरी है।'

    रोज-रोज अंधकार की ओर बढ़ते हुई इस देश के दुर्भाग्य पर किए गए ओशे के विचारों ने आधी ला दी। एक विचार प्रक्रिया शुरू हो गई। राजनीतिज्ञ बचाव वी मुद्रा में आ गए–'यह बिल्कुल स्वाभाविक है। जो मैं कह रहा है, बहुत से न्यस्त-स्वार्थों के विपरीत कह रहा हूँ, जो मैं कह रहा हूं, बहुत से पंडितों, पुरोहितों और वादों के विपरीत कह रहा हूँ। जो मैं कह रहा है, जो पुराना है, उसके विपरीत कह रहा हूँ। तो पुराना अपनी रक्षा के उपाय करेगा। लेकिन भी समझ यह है कि जब भी कोई विचार रक्षा वी, डिफेंस की हालत में आ जाता है, तो उसकी मौत कीब है। जब भी कोई विचार डिफेंसिव हो जाता है और रक्षा करने लगता है तब उसकी मौत कीब आ जाती है। और जब विचार जीवत होता है, तब वह आक्रामक होता है और जब मरने लगता है, तब वह रक्षात्मक हो जाता है। इसलिए मेरे लिहाज से वह सब लक्षण हैं। अगर एक आदी को न्यूट्रलाइज करने के लिए, दो साल मेहनत करनी पड़े तो वे बड़े साल भर लड़ाई चलानी पड़री हो, तो ये बड़े शुभ लक्षण हैं। साधारण लक्षण नहीं हैं। बड़े शुभ लक्षण हैं। मतलब यह है कि एक बात उनवी समझ में आ गई है कि वे डिफेंस में है।

    'इसी बात यह है कि जो मैं कह रहा है, और जो वह कह रहे हैं, हम दोनों के बल अलग है। अलग का मेरा मतलब यह है कि मेरा बल भविष्य में है, आने वाली गली में है। उनका बल अतीत में है, जाने वाली पदी में है। उनका जो बल है, वह जाने वाली दी है और अतीत में है। उनका बल डूबते हुए सूरज में है। मेरा बल उगते हुए सूरज में है।


    No comments