Osho Hindi Pdf- Dhai Akhar Prem Ka ढाई आखर प्रेम का
ढाई आखर प्रेम का
१ प्रेम मुक्ति है प्यारी शोभना, प्रेम। मेरा दूसरा पत्र । तू मेरी कितनी अपनी है-इसे कहने को कोई भी मार्ग नहीं है। इसलिए तू पूछे ही न तो अच्छा है। और पागल! मुझे देने के लिए तू कुछ भी न खोज पाएगी क्योंकि तेरे पास है ही क्या जो तूने नहीं दे दिया है? प्रेम पूर्ण से कम कुछ भी नहीं लेना है। इसलिए ही तो वह मुक्ति है। क्योंकि वह रीछे शून्य कर जाता है। या कि पूर्ण। वैसे-शून्य या पूर्ण एक ही सत्य को कहने के लिए दो शब्द हैं। शब्दकोश में वे विरोधी हैं, लेकिन सत्य में पर्यायवाची। मैं तेरे द्वारा पर किसी भी दिन उपस्थित हो जाऊंगा। लेकिन वह तेरे द्वारा जैसा मेरे मन में नहीं आता है। लगता है : मेरा घर-मेरा द्वार! गड़बड़ हो गयी है! मेरी शोभना के कारण ही सब गड़बड़ हो गयी है!
रजनीश के प्रणाम १८-७-१९६८ ।
(प्रति : सुश्री शोभना, अब मा योग शोभना, बंबई)
२ प्रेम में पूर्णतया खो जाना ही प्रभू को पा लेना है प्यारी दुलानी, प्रेम। तेरा पत्र। इतने प्रेम से भी बातें तूने लिखी हैं कि एक-एक शब्द मीठा हो गया है। क्या तुझे पता है कि जीवन में प्रेम के अतिरिक्त न कोई मिठास है, न कोई सुवास है। शायद प्रेम के अतिरिक्त और कोई अमृत नहीं है! कांटों में भी फूल खिलते हैं-वे शायद प्रेम से खिलते हैं। और मृत्यु से घिरे जगत में जो जीवन का संगीत जन्मता है-वह शायद प्रेम से ही जन्मता है। लेकिन, आश्चर्य है तो यही कि अधिकतर लोग बिना प्रेम के ही जिए चले जा ते हैं।.........................
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