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    Osho Hindi Pdf- Jo Bolein To Hari जो बोलैं तो हरि कथा

    Osho Hindi Pdf- Jo Bolein To Hari

    जो बोलैं तो हरि कथा

    समाधिस्थ स्वरः हरिकथा

    पहला प्रश्नः भगवानः जो बोले तो हरिकथा--हरिकथा की यह घटना क्या है? क्या यह घटना मौन व ध्यान की प्रक्रिया से गुजरने के बाद घटती है अथवा प्रार्थना से? हरिकथा का पात्र और अधिकारी कौन है? क्या हम आपके प्रवचनों को भी हरिकथा कह सकते हैं?


    योग मुक्ताः सहजो का प्रसिद्ध वचन है: जो सोएँ तो सुन्न में, जो जागै हरिनाम। जो बोलें तो हरिकथा, भथकत करें निहकाम।। जीयन जब विचार-मुक्त होता है, तो व्यक्ति एक पोली बांस की पोंगरी जैसा हो जाता। जैसे यांसुरी। फिर उससे परमात्मा के स्वर प्रवाहित होने लगते हैं। यांसुरी से गीत आता है, बांसुरी का नहीं होता। होता तो गायक का है। जिन ओठों पर बांसुरी रखी होती है, उन ओठों का होता है। बांसुरी तो सिर्फ बाधा नहीं देती। ऐसे ही कृष्ण बोले, ऐसे ही क्राइस्ट बोले। ऐसे ही बुद्ध बोले; ऐसे ही मोहम्मद बोले। 

    ऐसे ही वेद के ऋषि बोले, उपनिषद के द्रष्टा बोले। और इस सत्य को अलग-अलग तरह से प्रकट किया गया। जैसे कृष्ण के वचनों को हमने कहा--श्रीमदभगवदगीता। अर्थ है-- भगवान के वचन। कृष्ण से कुछ संबंध नहीं है। कृष्ण तो मिट गए--शून्य हो गए। फिर उस शून्य में से जो यहा, यह तो परम सत्ता का है। उस शून्य में से जो प्रकट हुआ, यह तो पूर्ण का है। और कृष्ण ऐसे शून्य हुए कि पूर्ण के बहने में जरा भी बाधा नहीं पड़ी। रंचमात्र भी नहीं। इसलिए कृष्ण को इस देश में हमने पूर्णावतार कहा। राम को नहीं कहा पूर्णावतार। परशुराम को नहीं कहा पूर्णावतार। राम अपनी मर्यादा रख कर चलते हैं। उनकी एक जीवन-दृष्टि है। उनका आग्रहपूर्ण आचरण है। ये पूरे शून्य नहीं हैं। पूर्ण की कुछ झलके उनसे आई हैं, लेकिन पूर्ण पर भी उनकी शर्ते हैं। पूर्ण उनसे उतना ही बह सकता है, जितना उनकी शर्तों के अनुकूल हो। उनकी शर्ते तोड़कर पूर्ण को भी बहने नहीं दिया जाएगा! इसलिए राम को इस देश के रहस्ययादियों ने अंशावतार कहा। 

    यह प्यारा ढंग है एक बात को कहने का। समझो, तो लाख की बात है। म समझो, तो दो काँडी की है। अंशायतार का अर्थ यह होता है कि राम ने पूरी-पूरी स्वतंत्रता नहीं दी--परमात्मा को प्रकट होने की। कोई नैतिक व्यक्ति नहीं दे सकता। नैतिक व्यक्ति का अर्थ ही यह होता है कि उसका जीयन सशर्त है। वह कहेगा--ऐसा ही हो, तो ठीक है। उसके आग्रह हैं। उसने एक परिपाटी बना ली है। एक शैली है उसकी। जैसे रेल की पटरियां और उन पर दौड़ती हुई रेलगाड़ियां। चलती तो ये भी हैं। गतिमान तो वे भी होती हैं। मगर पटरियों पर दौड़ती हैं--पटरियों से अन्यथा नहीं।................


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