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    Osho Hindi Pdf- Jyon Machhali Bin ज्यो मछली बिन नीर

    Osho Hindi Pdf- Jyon Machhali Bin

    ज्यो मछली बिन नीर

    पहला प्रश्नः भगवान, संत रज्जब ने क्या हम सोए हुए लोगों को देख कर ही कहा है: ज्यू मछली बिन नीर। समझाने की अनुकंपा करें। 


    नरेंद्र बोधिसत्य, और किसको देख कर कहेंगे? सोए लोगों की जमात ही है। तरहतरह की नींदें हैं। अलगअलग ढंग हैं सोए होने के। कोई पद की शराब पी कर सोया है। लेकिन सारी मनुष्यता सोयी हुई है। जिन्हें तुम धार्मिक कहते हो वे भी धार्मिक नहीं है, क्योंकि बिना जागे कोई धार्मिक नहीं हो सकता है। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं, जैन हैं--लेकिन धार्मिक मनुष्य का कोई पता नहीं चलता। धार्मिक मनुष्य हो तो हिंदू नहीं हो सकता है। ये सब सोए होने के ढंग हैं। कोई मस्जिद में सोया हुआ है, कोई मंदिर में सोया है। मैं एक बड़े प्यारे आदमी को जानता था। सरल थे, अदभुत रूप से सरल थे! और आग्नेय भी थे, अग्नि की तरह दग्ध कर दें। नाम था उनका--महात्मा भगवानदीन। वे जब भी बोलते थे तो बीच-बीच में रुक जाते। कहते, "बायां हाथ ऊपर करो। अब दायां हाथ ऊपर करो। अब दोनों हाथ ऊपर करो।' फिर कहते, "दोनों हाथ नीचे कर लो।' मैंने उनसे पूछा कि यह बीच-बीच में रुक कर लोगों से कवायद क्यों करवानी? तो वे कहते, "यह तो मुझे पक्का हो जाए कि लोग जागे सुन रहे हैं कि सोए है। और मैंने देखा कि यह सच था। जब वे कहते यायें हाथ ऊपर करो, तो कुछ तो करते ही नहीं, कुछ दायें कर देते। 

    अधिकतर लोग तो सोए ही हुए हैं--यूं भी, आंखें खोले हुए भी सोए हैं। नींद का अर्थ है कि तुम्हें इस बात का पता नहीं कि तुम कौन हो। काश तुम्हें पता हो जाए कि तुम कौन हो, तो फिर जीवन में आनंद है, फिर जीवन में एक सुवास है। क्योंकि फिर जीयन का फल खिलता है, जीवन का सूर्य निकलता है, उत्क्रमण की यात्रा शुरू होती है। अथर्ययेद का यह वचन प्यारा है.."उत्क्रामातः पुरुष मायपत्थाः माच्छित्था अस्माल्लोकायग्ने सूर्यस्य संदृशः। हे पुरुष, उत्क्रमण करो! उठो, ऊंचे उठो! इहलोक में ही रहते हुए सूर्य के सदृश्य तेजस्वी बनो।' पुरुष कहते हैं, वह जो तुम्हारे भीतर बसा है। शरीर के भीतर जो बसा है यह तुम हो। यह कौन है जो भीतर बसा है? उसका ही पता नहीं, तो और तुम्हारे जागरण का क्या अर्थ हो सकता है? अपनी ही सूझ न हो, अपना ही हाथ न सूझे, उसको हम अंधा कहेंगे। और अपनी ही आल्मा भी न सूझती हो, उसको तो महाअंधा कहना होगा। और जब तक यह अंधापन है, कैसे उत्क्रमण हो? कैसे तुम ऊंचे उठो? मूळ गर्त है, खड्ड है। जागरण पंख लगा देता है।सारा आकाश तुम्हारा है, बस दो पंख चाहिये। सारे आकाश का विस्तार तुम्हारा है। चांदतारे तुम्हारे हैं। अब तुम्हें यह जागरण की कला आ जाए तो सीढ़ी मिल गयी--मंदिर की सीढ़ियां मिल गयीं।अब बढ़े चलो।

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