Osho Hindi Pdf- Jyoti Se Jyoti Jale ज्योति से ज्योति जले
ज्योति से ज्योति जले
धर्म सबसे बड़ी कला है, क्योंकि इस जगत् में सबसे बड़ी खोज ब्रह्म की खोज है। जो ब्रह्म को खोज लेते हैं वे ही जीते हैं। शेष सब भम में होते हैं--जीने के भम में। दौड़-धूप बहुत है, आपा-धापी बहत है, लेकिन जीवन कहां? जीवन उन थोड़े-से लोगों को ही मिलता है, जीयन का रस उन थोड़े ही लोगों में बहता है--जो खोज लेते हैं उसे, जो भीतर छिपा है, जो जान लेते हैं कि मैं कौन हूं।
उपनिषद परिभाषा भी करते हैं कला को : “कलयति' निर्माययति स्वरुपं इति कला।' जो स्वरूप का निर्माण करती है वह कला है।. . .तब फिर ठीक ही कहा है: कलैय ब्रह्म। तो कत्मा ग्रहा है। तो कला धर्म है। तो कला जीवन का सार-सूत्र है।
सुंदरदास उन थोड़े-से कलाकारों में एक हैं जिन्होंने इस ब्रह्म को जाना। फिर ब्रह्म को जान लेना एक बात है, ब्रह्म को जनाना और बात है। सभी जाननेवाले जना नहीं पाते। करोड़ों में कोई एक-आध जानता है और सैकड़ों जाननेवालों में कोई एक जना पाता है। सुंदरदास उन थोड़े-से ज्ञानियों में एक हैं, जिन्होंने निःशब्द को शब्द में उतारा, जिन्होंने अपरिभाष्य की परिभाषा की। जिन्होंने अगोचर को गोचर बनाया, अरुप को रुप दिया। सुंदरदास थोड़े-से सद्गुरुओं में एक हैं। उनके एक-एक शब्द को साधारण शब्द मत समझना। उनके एक-एक शब्द में अंगारे छिपे हैं। और जरा-सी चिंगारी तुम्हारे जीवन में पड़ जाए तो तुम भी भभक उठ सकते हो परमात्मा से। तो तुम्हारे भीतर भी विराट का आविर्भाय हो सकता है। पड़ा तो है ही विराट, कोई जगानेवाली चिंगारी चाहिए।
चकमक पत्थरों में आग दबी होती है, फिर दो पत्थरों को टकरा देते हैं, आग प्रकट हो जाती है। ऐसी ही टकराहट गुरु और शिष्य के बीच होती है। उसी टकराहट में से ज्योति का जन्म होता है। और जिसकी ज्योति जली है वही उसको ज्योति दे सकता है, जिसकी ज्योति अभी जली नहीं है। जले दीए के पास हम बुझे दीए को लाते हैं। बुझे दीए की सामर्थ्य भी दीया बनने की है, लेकिन लपट चाहिए। जले दीए से लपट मिल जाती है। जले दिए का कुछ भी खोता नहीं है। बुझे दीए को सब मिल जाता है, सर्वस्य मिल जाता है। यही राज है गुरु और शिष्य के बीच। गुरु का कुछ खोता नहीं है और शिष्य को सर्यस्य मिल जाता है। गुरु के राज्य में जरा भी कमी नहीं होती। सच पूछो तो, राज्य और बढ़ जाता है। रोशनी और बढ़ जाती है। जितने शिष्यों के दीए जगमगाने लगते हैं उतनी गुरु की रोशनी बढ़ने लगती है।
यहां जीयन के साधारण अर्थशास्त्र के नियम काम नहीं करते। साधारण अर्थशास्त्र कहता है: जो तुम्हारे पास है, अगर दोगे तो कम हो जाएगा। रोकना, बचाना। साधारण अर्थशास कंजूसी सिखाता है, कृपणता सिखाता है। अध्यात्म के जगत् में जिसने बचाया उसका नष्ट हुआ, जिसने लुटाया उसका बढ़ा। वहां दान बढ़ाने का उपाय है। यहां देना और बांटना-- विस्तार है। यहां रोकना, संगृहीत कर लेना, कृपण हो जाना-मृत्यु है। इसलिए जिनके जीवन में रोशनी जन्मती है, वे बांटते हैं, लुटाते हैं। कबीर ने कहा है। दोनों हाथ उलीचिए। लुटाओ! अनंत स्रोत पर आ गए हो, लुटाने से कुछ चुकेगा नहीं। और नयी
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