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    Osho Hindi Pdf- Kya Sove Tu Bawari क्या सोवे तू बावरी

    Osho Hindi Pdf- Kya Sove Tu Bawari क्या सोवे तू बावरी

    क्या सोवे तू बावरी

    तो पहली बात, सबसे पहले तो जैसा कि धीरू भाई ने कहा, जरूर एक ऐसा संगठन चाहिए युवकों का जो किसी न किसी रूप में सैन्य ढंग से संगठित हो। संगठन तो चाहिए ही। और जैसा काकू भाई ने भी कहा, जब तक एक अनुशासन, एक डिसिप्लेन न हो, तब तक कोई संगठन आगे नहीं जा सकता है–युवकों का तो नहीं जा सकता है।

    तो काकू भाई का सुझाव और धीरू भाई का सुझाव दोनों उपयोगी हैं। चाहे रोज मिलना आज संभव न हो पाए तो सप्ताह में तीन बार मिलें। अगर वह भी संभव न हो तो दो बार मिलें। एक जगह इकट्ठे हों। एक नियत समय पर, घंटे-डेढ़ घंटे के लिए इकट्ठे हों। और जैसा कि एक मित्र ने कहा कि 'मित्रता कैसे बढ़े?' मित्रता बढ़ती है साथ में कोई भी काम करने से। मित्रता बढ़ने का और कोई रास्ता नहीं है। काकू भाई ने जो कहा, उस तरह परिचय बढ़ सकता है, मित्रता नहीं बढ़ेगी। मित्रता बढ़ती है, कोई भी काम में जब हम साथ होते हैं। अगर हम एक खेल में साथ खेलें, तो मित्रता बन पाएगी मित्रता नहीं रुक सकती है। अगर हम साथ कवायद करें, तो मित्रता बन जाएगी। अगर हम साथ गड्डा भी खोदें, तो भी मित्रता बन जाएगी। अगर हम साथ खाना भी खाएं, तो भी मित्रता बन जाएगी। हम कोई काम साथ करें, तो मित्रता बननी शुरू होती है! हम विचार भी करें साथ बैठकर, तो भी मित्रता बननी शुरू होगी। और वे ठीक कहते हैं कि मित्रता बनानी चाहिए। लेकिन वह सिर्फ परिचय होता है, फिर मित्रता गहरी होती है, जब हम साथ खड़े होते हैं, साथ काम करते हैं। अगर कोई ऐसा काम हमें करना पड़े, जिसको हम अकेला कर ही नहीं सकते, जिसको साथ ही किया जा सकता है, तो मित्रता गहरी होनी शुरू होती है।

    तो यह ठीक है कि कुछ खेलने का उपाय हो, कुछ चर्चा करने का उपाय हो। बैठकर हम साथ बात कर सकें, खेल सकें। और वह भी उचित है कि कभी हम पिकनिक का भी आयोजन करें। कभी कहीं बाहर आउटिंग के लिए भी इकट्रे लोग जाएं। मित्रता तो तभी बढ़ती है, जब हम एक-दूसरे के साथ किन्हीं कामों में काफी देर तक संलग्न होते हैं।
    और एक जगह मिलना बहुत उपयोगी होगा। एक घंटे भर के लिए, डेढ़ घंटे के लिए। वहां मेरी दृष्टि है कि जैसा उन्होंने उदाहरण दिया कुछ और संगठनों का। उन संगठनों की रूपरेखा का उपयोग किया जा सकता है। उनकी आत्मा से मेरी कोई स्वीकृति नहीं है, उनकी धारणा और दृष्टि से मेरी कोई स्वीकृति नहीं है। पूरा विरोध है, क्योंकि वे सारी संस्थाएं. जो अब तक चलती रही हैं, एक अर्थों में क्रांति-विरोधी संस्थाएं हैं। लेकिन उनकी रूपरेखा का पूरा उपयोग किया जा सकता है। साथ में जोड़ देने का है जो। वह काकू भाई समझते हैं कि साथ में अगर कवायद की जाए, तो उसके बड़े गहरे परिणाम होते हैं। जब हमारे शरीर एक साथ, एक रिदम में कुछ काम करते हैं, तो हमारे मन भी थोड़ी देर में एक रिदम में आना शुरू हो जाते हैं। साथ में जोड़ देने का जो है, वह यह है कि अकेली कवायद को मैं पसंद नहीं करता हूं, क्योंकि वह शारीरिक से ज्यादा नहीं है। और न खेल को अकेला पसंद करता हूं, क्योंकि वह भी शारीरिक है। साथ में मैं यह पसंद करूंगा, और उसके लिए शीघ्र ही अपन कुछ उपाय करेंगे कि मेरे साथ दस-पचास युवक एक जगह बैठकर दो-चार दिन में उस प्रयोग को पूरा समझ लें।

    कवायद भी चले और साथ में ध्यान भी चले। खेल भी चले और साथ में ध्यान भी चले। मेडिटेशन इन एक्शन कहता हूँ उसको मैं। बूढ़े आदमी जब भी मेडिटेशन करेंगे, तो इनएक्शन की होगी वह। वह एक कोने में बैठकर कर सकते हैं। एक युवक को, एक युवती को हम कहें, एक छोटे बच्चे को कहें कि तुम एक कोने में घंटे भर शांत बैठे रहो, तो उसके लिए बहुत घबड़ाने वाला है। और इसीलिए दुनिया में युवक-युवतियां और छोटे बच्चे ध्यान नहीं कर पाए आज तक, क्योंकि ध्यान की जो शर्त है, वह बूढ़े आदमी के लिए तो बिलकुल ठीक है, लेकिन छोटे बच्चों के लिए बिलकुल ठीक नहीं है। हमें कुछ ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी कि जब बच्चा खेल रहा है, तब हमें उसे कहना पड़ेगा कि खेल के वक्त वह ध्यानपूर्वक खेले। या जब वह कवायद कर रहा है, तो बाहर पैर तो कवायद करें, और भीतर मन बिलकुल शांत हो, कहां हो, किस जगह हो, वह उसका ध्यान रखे। दोहरे काम हैं, बाहर शरीर कवायद करे और भीतर चित्त ध्यान करे। तो एक सक्रिय ध्यान की व्यवस्था उस संगठन के साथ जोड़नी जरूरी है।

    और वह तो जो रूपरेखा में जिस तरह सारी दुनिया में युवकों के संगठन चलते हैं, वह समझकर उस तरह के संगठन बनाने की कोशिश करनी चाहिए। अंततः तो यह जरूरी होगा कि रोज वे संगठन के लोग मिलें-वह उनके...............


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