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    Osho Hindi Pdf- Prem Hai Dwar Prabhu Ka

    Osho Hindi Pdf- Prem Hai Dwar Prabhu Ka


    प्रेम है द्वार प्रभु का

    भय या प्रेम? 


    मनुष्य जाति भय से, चिंता से, दुख और रीड़ा से आक्रांत है, और पांच हजार वर्षों से-आज ही नहीं। जव आज ऐसी बात कह जाती है। कि मनुष्यता भय से, चिंता से, तनाव से, अशांति से भर गई है तो ऐसा भ्रम पैदा होता है जैसे पहले लोग शांत थे, आनंदित थे। 

    यह बात शत प्रतिशत असत्य है कि पहले लोग शांत थे और चिंता रहित थे। आदमी जैसा आज है हमेशा था। ढाई हजार वर्ष पहले बुद्ध लोगों को समझा रहे थे, शांत ह ने के लिए। अगर लोग शांत थे तो शांति की बा समझाने की क्या जरूरत थी? पांच हजार वर्ष पहले उपनिषद के ऋषि ही लोगों को समझा रहे थे, आनंदित होने के ि लए। लोगों को समझा रहे थे दुख से मुक्त होने के लिए। लोगों को समझा रहे थे प्रेम करने के लिए। अगर लोग प्रेमपूर्ण थे और शांत थे तो उपनिषद के ऋषि पागल रहे होंगे। किसको समझा रहे थे। 

    दुनिया में अब तक ऐसी एक भी पुरानी से पुरानी किताब नहीं है जो यह न कहती ह है कि आज का के लोग अशांत हो गए हैं। मैं छह हजार वर्ष पुरानी चीन वी एक कि ताव वी भूमिका पढ़ रहा था। उस भूमिका में लिखा है कि आजकल के लोग अशांत है, नास्तिकता हैं, बहुत बुरे हो गए हैं। पहले के लोग अच्छे थे। छह हजार साल पहले वी किताब कहती है पहले के लोग अच्छे थे। ये पहले के लोग कब थे? ये पहले लो गों की बात, एक कल्पना (ऊलजी) और सपने से ज्यादा नहीं है। आदमी हमेशा से अ शांत रहा है और इसलिए अगर हम यह समझ लें कि आज अशांत हैं, आज भय आ क्रांत हैं, आज चिंतित और दुखी हैं तो हम जो भी निदान खोजेंगे, वह गलत होगा। 

    आज तक वी पूरी मनुष्यता किन्हीं अर्थों में गलत रही है, भांत रही है। केवल आज का ही आदमी गलत अपनी गलत नहीं है। आज तक वी पूरी मनुष्यता ही कुछ गलत सी है। और उसने अपनी गलती को सुधारने के लिए कुछ भी किया है उससे गलती मिती नहीं, और बढ़ती चली गई। मनुष्य हमेशा से भयभीत था और है। भय (थमंत) के आधार पर उसका सारा जीवन खड़ा हुआ है। जब वह मंदिरों में प्रार्थना करता है तब भी भय के कारण। उसने जो भगवान गढ़ रखे हैं वह भय से ही उत्पन्न हुए हैं। जब राजधानियों में लोग पदों की आकांक्षा करते हैं, बड़े पदों पर पहुंचना चाहते हैं तब भी भय के ही कारण। क्योंकि जितने बड़े पद पर कोई होता है उतनी सत्ता और शक्ति उसके हाथ में होती है, उत ना भय कम मालूम होता है। इस आशा में आदमी दौड़ता है, दौड़ता है। चंगेज, तैमूर नेपोलियन, सिकंदर, हिटलर और स्टेलिन सभी भयभीत लोग हैं। सभी घबराएं हुए लोग हैं। सभी डरे हुए लोग हैं। उस भय से बचने के लिए बड़ी ताकत हाथ में हो, इ सवी चेष्टा में लगे हुए हैं। धन की जो खोज कर रहा है वह भी भयभीत आदमी है। धन से सुरक्षा (एमवनतपजल) मिल सकेरी इस आशा में वह धन को इकट्ठा करता चला जा रहा है।


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