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    Osho Hindi Pdf- Ram Duware राम दुवारे जो मरे


    राम दुवारे जो मरे

    आमुख

    ओशो वी समग्रतावाठी जीवनदृष्टि व तद्जन्य नव-संन्यास को समझने में बहुत लोगों को कठिनाई होती है। मजा यह है कि कठिनाई का कारण इस जीवनशैली वी दुरुहता नहीं उल्टे इसवी सरलता है। बात इतनी स्पष्ट, इतनी सीटी, सत्य व निकट वी है कि इतने निकट सत्य को देखने, सुनने, समझने के न हम आती हैं, न ही राजी। किंतु हम सुनें न सुनें, समझें न समझें, अब मनुष्य के सामने दूसरा कोई विकल्प है भी नह

    इस जीवनशैली के सिवा। ओशो वी आध्यात्म व विज्ञान, परमात्मा व संसार को जो डनेवाही जीवनदृष्टि की कुछ झलकियां यहां देना उपयोग समझता हूं, जिनमें से कुछ उद्धरण इसी पुस्तक से और कुछ अन्य से हैं।
    ओशो के वचन : "पश्चिम में जहां चीजें बहुत बढ़ गई हैं उनको तुम कहते हो भौतिकवादी लोग। सिर्प इसलिए कि उनके पास भौतिक चीजें ज्यादा हैं। इसलिए भौतिकवादी। और तुम आ ध्यात्मवादी, क्योंकि तुम्हारे पास खाने-पीने को नहीं है, छप्पर नहीं है, नौकरी नहीं है। यह तो खूब आध्यात्म हुआ! ऐसे आध्यात्म का क्या करोगे? ऐसे आध्यात्म को आग लगाओ। और जिनके पास चीजें बहुत हैं, उनकी पकड़ कम हो गई है। स्वभावतः। कितना पक, डोगे? जिनके पास कछ नहीं है, उनकी पकड़ ज्यादा होती है। 

    सच तो यह है कि जितनी भौतिक उन्नति होती है, उतना देश कम भौतिकवादी हो जाता है। यह देश आध्यात्म वी व्यर्थ दावेदारी करता है। इस देश को पहले भौतिकवादी होना चाहिए, तो यह आध्यात्मवाटीभी हो सकेगा। इस देश के पास अभी तो शरीर को भी संभालने का उपाय नहीं है, आत्मा वी उड़ान तो यह भरे तो कैसे भरे! टीणा ही पा स नहीं है, तो संगीत तो कैसे पैदा हो! पेट भूखे हैं, उनमें प्रेम के टीज कैसे फलें! पेट भूखे हैं, उनमें ध्यान कैसे उगाया जाए? मेरे हिसाव में हमने कोई अगर बड़ी-से-बड़ी भूल वी है इन पांच हजार वषा में तो व ह यह कि हमने भौतिकवाद वी निंदा की है। और भौतिकवाद वी निंदा पर आध्यात्म वाद को खड़ा करना चाहा है। उसका यह दुष्परिणाम है जो हम भोग रहे हैं। 

    इसमें तु म्हारे साधु-संतों का हाथ है। और जब तक तुम यह न समझोगे कि तुम्हारे साधु-संतों वी जुम्मेवानी है तुम्हें भिखमंगा रखने में, गरीब रखने में, टीन-ठीमार रखने में, तब तक तुम इस नरक के पार नहीं हो सकोगे| क्योकि तुम मूल कारण को ही न पहचा नोगे तो उसवी जड़ कैसे कटेग? मेरे हिसाव में, भौतिकवाद आध्यात्मवाद का अनिवार्य चरण है। भौतिकवाद बुनियाद है मंदिर वी और आध्यात्म मंदिर का शिखर है| बुनियाद के बिना शिखर नहीं हो स कता। भौतिकवाद और आध्यात्म में कोई विरोध नहीं है। सहयोग है।



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