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    Osho Hindi Pdf- Samadhi Ke Saptdwar समाधी के सप्त द्वार

    Osho Hindi Pdf- Samadhi Ke Saptdwar

    समाधी के सप्त द्वार

    पहला प्रवचन
    स्रोतापन्न बन
    ध्यान-शिविर, आनंद-शिला, अंबरनाथ; रात्रि ९ फरवरी,

    हे उपाध्याय, निर्णय हो चुका है, मैं ज्ञान पाने के लिए प्यासा हूं। अब आपने गुहय मार्ग पर पड़े आवरण को हटा दिया है और महायान की शिक्षा भी दे दी है। आपका सेवक आपसे मार्गदर्शन के लिए तत्पर है। यह शुभ है, श्रावक तैयारी कर, क्योंकि तुझे अकेला यात्रा पर जाना होगा। गुरु केवल मार्गनिर्देश कर सकता है। 

    मार्ग तो सबके लिए एक है, लेकिन यात्रियों के गंतव्य पर पहुंचने के साधन अलग-अलग होंगे। अ३ अजित-हृदय, तू किसको चुनता है? चक्षु-सिद्धांत के समतान अर्थात चतुर्मुखी ध्यान को या छः पारअमताओं के बीच से तू अपनी राह बनाएगा, जो सदगुण के पवित्र द्वार हैं और जो ज्ञान के सप्तम चरण बोधि और प्रज्ञा को उपलब्ध कराते हैं? चतुर्मुखी ध्यान का दुर्गम मार्ग पर्वतीय है तीन बार वह महान है, जो उसके ऊंचे शिखर को पार करता है। पारमिता के शिखर तो और भी दुर्गम पथ से प्राप्त होते हैं। तुझे सात द्वारों से होकर यात्रा करनी होगी। ये सात द्वार सात क्रूर व धूर्त शक्तियों के, सशक्त वासनाओं के दुर्ग जैसे हैं। 

    हे शिष्य, प्रसन्न रह और इस स्वर्ण-नियम को स्मरण रख। एक बार जब तूने स्रोतापन्नद्वार को पार कर लिया--स्रोतापन्न, वह जो निर्वाण की ओर बहती नदी में प्रविष्ट हो गया-- और एक बार जब इस जन्म में या किसी अगले जन्म में तेरे पैर ने निर्वाण की इस नदी की गहराई छ ली, तब, हे संकल्पवान, तेरे लिए केवल सात जन्म शेष हैं। हे उपाध्याय, निर्णय हो चुका है, मैं ज्ञान पाने के लिए प्यासा हं। अब आपने गुहय मार्ग पर पड़े आवरण को हटा दिया है और महायान की शिक्षा भी दे दी है। आपका सेवक आपसे मार्गदर्शन के लिए तत्पर है। यह शुभ है, श्रावक तैयारी कर, क्योंकि तुझे अकेला यात्रा पर जाना होगा। 

    गुरु केवल मार्गनिर्देश कर सकता है। मार्ग तो सबके लिए एक है, लेकिन यात्रियों के गंतव्य पर पहुंचने के साधन अलग-अलग होंगे। अ३ अजित-हृदय, तू किसको चुनता है? चक्षु-सिद्धांत के अर्थात चतुर्मुखी ध्यान को या छः पारअमताओं के बीच से तू अपनी राह बनाएगा, जो सदगुण के पवित्र द्वार हैं और जो ज्ञान के सप्तम चरण बोधि और प्रज्ञा को उपलब्ध कराते हैं? चतुर्मुखी ध्यान का दुर्गम मार्ग पर्वतीय है तीन बार वह महान है, जो उसके ऊंचे शिखर को पार करता ..........

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