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    Osho Hindi Pdf- Talking To Workers टॉकिंग टू वर्कर्स

    Osho Hindi Pdf- Talking To Workers

    टॉकिंग टू वर्कर्स

    वर्कर्स केंप, लोनावला प्रवचन : 1, 
    दिनांक 23 दिसंबर, 1969

    मेरे प्रिय आत्मन्
    कुछ बहुत जरूरी बातों पर विचार करने को हम यहां इकट्ठा हुए हैं। मेरे खयाल में नहीं थी यह बात कि जो मैं कह रहा हूं, एक-एक व्यक्ति से उसके प्रचार की भी कभी कोई जरूरत पड़ेगी। इस संबंध में कभी सोचा भी नहीं था। मुझे जो आनंदपूर्ण प्रतीत होता है और लगता है कि किसी के काम आ सकेगा, वह मैं इन लोगों से...। अब मेरी जितनी सामर्थ्य और शक्ति है उतना कहता हूं। लेकिन जैसे-जैसे मुझे ज्ञात हुआ और सैकड़ों लोगों के संपर्क में आने का मौका मिला तो मुझे यह दिखाई पड़ना शुरू हुआ की मेरी सीमाएं हैं। और मैं कितना ही चाहूं तो भी उन सारे लोगों तक अपनी बात नहीं पहुंचा सकता हूं जिनको उसकी जरूरत है। और जरूरत बहुत है और बहुत लोगों को है। पूरा देश ही, पूरी पृथ्वी ही कुछ बातों के लिए अत्यंत गहरे रूप से प्यासी और पीड़ित है।

    पूरी पृथ्वी को छोड़ भी दें तो इस देश में भी एक आध्यात्मिक संकट की, एक स्पीचुअल क्राइसिस की स्थिति है। पुराने सारे मूल्य खंडित हो गए हैं। पुराने सारे मूल्यों का आदर और सम्मान विलीन हो गया है। नए किसी मूल्य की कोई स्थापना नहीं हो सकी। आदमी बिलकुल ऐसे खड़ा है जैसे उसे पता ही न हो वह कहां जाए और क्या करे। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि मनुष्य का मन बहुत अशांत, बहुत पीड़ित, बहुत दुखी हो जाए। 

    एक-एक आदमी के पास इतना दुख है कि काश हम खोलकर देख सकें उसके हृदय को तो हम घबरा जाएंगे। जितने लोगों से मेरा संपर्क हुआ है, उतना ही मैं हैरान हुआ आदमी जैसा ऊपर से दिखाई पड़ता है, उससे ठीक उलटा उसके भीतर है। उसकी मुस्कुराहटें झूठी हैं, उसकी खुशी झूठी है, उसके मनोरंजन झूठे हैं, और उसके भीतर बहुत गहरा नर्क, बहुत अंधेरा, बहुत दुख और पीड़ा भरी है। इस पीड़ा को, इस दुख को मिटाने के रास्ते हैं, इससे मुक्त हुआ जा सकता है।

    आदमी का जीवन एक स्वर्ग की शांति का और संगीत का जीवन बन सकता है। और जब से मुझे ऐसा लगना शुरू हुआ तो ऐसा प्रतीत हुआ कि जो बात मनुष्य के जीवन को शांति की दिशा में ले जा सकती है, अगर उसे हम उन लोगों तक नहीं पहुंचा देते जिन्हें उसकी जरूरत है तो हम एक तरह के अपराधी हैं। हम भी जाने-अनजाने कोई पाप कर रहे हैं। मुझे लगने लगा कि अधिकतम लोगों तक कोई बात उनके जीवन को बदल सकती हो तो उसे पहुंचा देना जरूरी है। लेकिन मेरी सीमाएं हैं, मेरी सामर्थ्य है, मेरी शक्ति है, उसके बाहर वह नहीं किया जा सकता। मैं अकेला जितना दौड़ सकता हूं, जितने लोगों तक पहुंच सकता हूं, वे चाहे कितने ही अधिक हों फिर भी इस वृहत् जीवन और समाज को और इसके गहरे दुखों को देखते हुए उनका कोई भी परिमाण नहीं है।

    एक समुद्र के किनारे हम छोटा-मोटा रंग घोल दें, कोई एकाध छोटी-मोटी लहर रंगीन हो जाए, इससे समुद्र के जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ सकता है। और बड़ा मजा यह है कि वह एक छोटी-सी जो लहर थोड़ी-सी रंगीन भी हो जाएगी, वह भी उस बड़े समुद्र में थोड़ी देर में खो जाने को है। उसका रंग भी खो जाने को है। तो कैसे जीवन के इस बड़े सागर में दूर-दूर तक शांति के रंग फेंके जा सकें, उस संबंध में ही विचार करने को हम यहां इकट्ठा हुए हैं। इसके साथ ही यह भी मुझे दिखाई पड़ता है कि जो आदमी केवल अपनी ही शांति में उत्सुक हो जाता है, वह आदमी कभी पूरे अर्थों में शांत नहीं हो सकता है। क्योंकि अशांत होने का एक कारण यह भी है, केवल अपने आप में ही उत्सुक होना, मात्र अपने में ही उत्सुक होना, सेल्फ सेंटर्ड होना भी अशांति के बुनियादी कारणों में से एक है।

    जो आदमी सिर्फ खुद में ही उत्सुक हो जाता है, सिर्फ स्वयं में ही उत्सुक हो जाता है, और चारों तरफ से आंख बंद कर लेना चाहता है वह आदमी वैसा ही है, जैसे कोई एक आदमी एक खूबसूरत सुंदर घर बनाए और इसकी फिकर ही न करे कि उसके घर के चारों तरफ गंदगी के ढेर लगे हुए हैं; वह अपने घर में एक बगिया लगा ले और इसकी फिकर ही न करे कि चारों तरफ दुगध इकट्ठी हो गई है। उसकी बगिया, उसके फूल, उसकी सुगंध बहुत काम नहीं आएंगे अगर चारों तरफ का सारा पड़ोस गंदा है। तो वह गंदगी उसके घर में प्रवेश करेगी उसके फलों की सगंध को भी इबा देगी।
     


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