काम-वृत्ति पर ध्यान - ओशो
काम-वृत्ति पर ध्यान - ओशो
कामवासना से भयभीत न हों। क्योंकि भय हार की शुरुआत है। उसे भी स्वीकार करें। वह भी है और अनिवार्य है। हां-उसे जानें जरूर—पहचानें। उसके प्रति जागें। उसे अचेतन (अनकांशस) से चेतन (कांशस) बनाएं। निंदा से यह कभी भी नहीं हो सकता है। क्योंकि, निंदा दमन (रिप्रेशन) है। और दमन की वृत्तियों को अचेतन में ढकेल देता है। वस्तुतः तो दमन के कारण ही चेतना चेतन और अचेतन में विभाजित हो गई है। और यह विभाजन समस्त द्वंद्व ( कांफलिक्ट) का मूल है। यह विभाजन ही व्यक्ति को अखंड नहीं बनने देता है। और अखंड बने बिना शांति का, आनंद का, मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है। इसलिए कामवासना पर ध्यान करो। जब वह वृत्ति उठे तो ध्यानपूर्वक ( माइंडफुली) उसे देखो। न उसे हटाओ, न स्वयं उससे भागो। उसका दर्शन अभूतपूर्व अनुभूति में उतार देता है। और ब्रह्मचर्य इत्यादि के संबंध में जो भी सीखा-सुना हो, उसे एक-बारगी कचरे की टोकरी में फेंक दो। क्योंकि, इसके अतिरिक्त ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होने का कोई मार्ग नहीं है।
- ओशो
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