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    भारत ठीक अर्थों में अर्द्धसामंतवादी है, अभी भी फ्यूडलिस्ट है - ओशो

     

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    भारत ठीक अर्थों में अर्द्धसामंतवादी है, अभी भी फ्यूडलिस्ट है - ओशो 


    हिटलर ने लिखा है अपनी आत्म कथा में, कि मैंने तो एक ही बात पाई कि बड़े से बड़े असत्य को भी अगर बार-बार दोहराते चले जाएं तो वह धीरे-धीरे सत्य मालूम होने लगता है। मार्क्स और उसके पीछे चलने वाले लोग सौ वर्षों से एक बात दोहरा रहे हैं कि समाजवाद एक ऐतिहासिक अनिवार्यता है। वह आएगा ही, उसके रुकने न रुकने का कोई सवाल नहीं। पूंजीवाद के बाद वह अनिवार्य चरण है। वे इतने दिन से चिल्ला रहे हैं इस बात को कि यह सबके मन में गहरे बैठ गई कि वह अनिवार्य चरण है वह आएगा चाहे न चाहे वह आने को है ।

    मैं आपसे कहना चाहता हूं, भविष्य में कोई भी चरण अनिवार्य नहीं है। भविष्य बिलकुल ही निश्चित नहीं है, कभी भी निश्चित नहीं है। और भविष्य हम निश्चित करते हैं तो हम कैसा सोचेंगे उससे निश्चय होगा भविष्य का । और भारत के लिए तो और भी विचारणीय है। क्योंकि भारत तो ठीक अर्थों में पूंजीवादी भी नहीं है । भारत तो ठीक अर्थों में अर्द्धसामंतवादी है। अभी भी फ्यूडलिस्ट है। अभी भी भारत में पूंजीवाद जनम गया ऐसा कहना कठिन है । और इसलिए भारत की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में और भी दुर्भाग्य हो गया है। पूंजीवाद जन्मा नहीं है और पूंजीवाद की मृत्यु की बातें शुरू हो गई हैं। भारत में पूंजीवाद विकसित भी नहीं हुआ है और उसके गर्भपात का विचार, समाजवादी व्यवस्था सोशलिस्ट पैटर्न और सारी बातें शुरू हो गई।

    भारत के जीवन को इससे बहुत ज्यादा नुकसान और हानि उठानी पड़ेगी। अगर पूंजीवाद ठीक से विकसित हो जाए, तो हम चिंतन और विचार भी कर सकते हैं। वह विकसित नहीं हुआ है और उसके विकास में बाधा पड़नी शुरू हो गई, क्योंकि समाजवादी ढांचे को खड़ा करने की चेष्टा भी साथ में चलनी शुरू हो गई। तो भारत एक अजीब परेशानी में पड़ गया; न वह पूंजीवादी है, न वह समाजवादी है। पूंजीवाद के विकास के सारे चरण रोकने की कोशिश की जा रही है और समाजवाद को जबरदस्ती थोपने की भी कोशिश की जा रही है। समाजवाद अगर अनिवार्य चरण भी हो जैसा मार्क्स कहता है। तो वह पूर्ण रूप से विकसित पूंजीवादी समाज में ही हो सकता है।

    लेकिन मार्क्स की सारी भविष्यवाणियां फिजूल चली गई। रूस में वह विकसित हुआ, जो बिलकुल ही सामंतवादी समाज था। चीन में वह विकसित हुआ, जिसका भी पूंजीवाद से कोई भी संबंध नहीं था । और बड़े से बड़े पूंजीवादी मुल्क अमेरिका में उसके कोई भी आसार नहीं हैं। सच तो यह है कि अगर पूंजीवाद ठीक से विकसित हो तो, वह अनिवार्यरूपेण धीरे-धीरे, जो उसके भीतर छिपे हुए तत्व हैं स्वतंत्रता के, लोकतंत्र के, वे उसे एक मानववादी समाज में रूपांतरित कर सकते हैं। लेकिन अगर जबरदस्ती की जाए तो वह रूपांतरण रोका जा सकता है और समाजवाद जैसी धारणा को थोपा जा सकता है।

     - ओशो 

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