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    सिद्धियों में रस न लेना, विचारों का विसर्जन - ओशो

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      सिद्धियों में रस न लेना, विचारों का विसर्जन - ओशो 

    सिद्धियों में रस न लेना

    योग से बहुत कुछ संभव है—अतीन्द्रिय, अलौकिक। लेकिन, नियमातीत कुछ भी घटित नहीं होता है। अतीन्द्रि य—अनुभवों और सिद्धियों के भी अपने नियम हैं। चमत्कार भी, जो नहीं जानते उन्हीं के लिए चमत्कार हैं। या फिर, अस्तित्व ही चमत्कार है। पर, जहां तक बने, सिद्धियों में रस न लेना। साधक के लिए उससे अकारण ही व्यवधान निर्मित होता है।

    विचारों का विसर्जन

    ध्यान में प्रकाश के साथ-साथ बीच-बीच में विचार आते हैं, तो उन्हें देखना—तीव्रता से पूरी चेतना से—समग्र एकाग्रता से। और, कुछ भी न करना—बस, द्रष्टा बनना। पर, दृष्टि प्रगाढ़ हो और पैनी। और, विचार खो जाएंगे। बड़े कमजोर हैं बेचारे। लेकिन, हमारी दृष्टि उनसे भी ज्यादा बेजान है— इसलिए कठिनाई है। अन्यथा, विचार से ज्यादा हवाई चीज और क्या हो सकती है?

     - ओशो 


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