• Latest Posts

    मनुष्य के स्वभाव के प्रतिकूल जबरदस्ती थोपी गई कोई भी व्यवस्था अंतिम नहीं हो सकती - ओशो

     

    Any-system-imposed-forcefully-contrary-to-human-nature-cannot-be-final-Osho


    मनुष्य के स्वभाव के प्रतिकूल जबरदस्ती थोपी गई कोई भी व्यवस्था अंतिम नहीं हो सकती - ओशो 


    रूस में कोई साठ लाख से लेकर एक करोड़ लोगों की हत्या करनी पड़ी। और चीन में वे कितनी हत्या कर रहे हैं इसका शायद कभी कोई आंकड़ा स्पष्ट नहीं हो सकेगा। उतनी बड़ी हत्या करने के बाद जबरदस्ती — जैसे हम किसी बच्चे को मां के पेट से निकाल लें – समाजवाद पैदा कर लिया गया। फिर इतने वर्षों तक भी जबरदस्ती ही आदमी को दबा कर उसे विकसित करने की चेष्टा की गई। लेकिन इधर पांच-सात वर्षों से रूस का उत्पादन रोज नीचे जा रहा है और रोज रूस को लग रहा है कि ज्यादा दिन दबा कर हम आदमी से जबरदस्ती उसके स्वभाव के प्रतिकूल काम नहीं ले सकते।

    और विचार पैदा हो रहा है। और आज चीन और रूस के बीच जो झगड़ा खड़ा हो गया, उसके पीछे वही विचार है। रूस धीरे-धीरे व्यक्तिगत संपत्ति की तरफ झुकाव ले रहा है। उसे लेना पड़ेगा, क्योंकि मनुष्य के स्वभाव के प्रतिकूल जबरदस्ती थोपी गई कोई भी व्यवस्था अंतिम नहीं हो सकती। या फिर उसे अंतिम बनाए रखने के लिए इतना श्रम करना पड़ेगा, इतनी मुसीबत उठानी पड़ेगी, इतनी हत्या और हिंसा करनी पड़ेगी कि वह हिंसा और हत्या मंहगी पड़ सकती है। थोड़े दिन तक खींची जा सकती है।

    रूस के झुकाव व्यक्तिगत संपत्ति को थोड़ी-सी सुविधा देने के तरफ है। सब भांति का उत्पादन गिरा है, खेती और गेहूं का उत्पादन भी गिरा है। उसे कनाडा और अमेरिका से इधर तीन वर्षों में गेहूं खरीदना पड़ा है। और अभी मैं एक लेख पढ़ता था, और किसी ने भविष्यवाणी की है कि आने वाले उन्नीस सौ पचहत्तर में सारी दुनिया में संभवतः मनुष्य के इतिहास का सबसे बड़ा अकाल संभावित है। उस अकाल से हिंदुस्तान, चीन और रूस सर्वाधिक प्रभावित होने वाले मुल्क होंगे और अमेरिका को यह निर्णय करना पड़ेगा कि इन तीन मुल्कों में से किस एक को बचाएं।

    ये तीनों इकट्ठे बचाए भी नहीं जा सकेंगे। और अगर रूस को बचना है तो उसे आने वाले सात वर्षों में रोज-रोज अमेरिका के निकट पहुंचा जाना पड़ेगा। अगर भविष्य में कोई युद्ध भी हो सकता है, तो वह रूस और अमेरिका को साथ लेकर चीन के साथ हो सकता है, रूस और अमेरिका के बीच युद्ध की संभावना खत्म। और जैसे-जैसे रूस अमेरिका के निकट पहुंचेगा, वैसे-वैसे रूस को अपनी सारी जबरदस्ती की थोपी व्यवस्था को फिर विसर्जित कर देना पड़ेगा।

    और हम इस देश में समाजवादी व्यवस्था को जबरदस्ती थोप देने के लिए आकुल हो गए। मैं यह आपसे कहना चाहता हूं, समाजवादी व्यवस्था तो आने वाले भविष्य में किसी देश के लिए लागू नहीं होगी, क्योंकि साइकोलाजिकली मनुष् के स्वभाव के प्रतिकूल है। मनुष्य के भीतर, मनुष्य की पात्रता, उसकी योग्यता, उसके प्राण एकदम असमान हैं, सारे लोगों से। वे सारी अभिव्यक्तियों में असमान हैं। और हम कितनी ही जोर-जबरदस्ती करें, वे नये-नये रास्ते खोज लेंगे असमान होने के । वे नये मार्ग खोज लेंगे असमान होने के । और अगर हम पूरी कोशिश करें और पूरा श्रम करें, तो जरूर हम रोक सकते हैं। लेकिन उस रोकने में आदमी की हालत वैसी हो जाएगी। जैसे वे चीन में कभी लोगों को सजा देते थे। तो एक लोहे की जैकिट पूरे शरीर पर कस देते थे। न हाथ हिल सकता था, न गर्दन हिल सकती थी, न कमर हिल सकती थी। और आदमी जरा भी नहीं हिल सकता था, लोहे से जकड़ देते थे। और वह जकड़ा हुआ आदमी दो दिन, चार दिन, पांच दिन, सात दिन खड़ा रहता था। न हिल सकता, न डुल सकता, श्वास तक लेनी कठिन हो जाती थी। सजा देते थे उसे, और कंफेस करवाने के लिए इस भांति बांध देते थे उसे। अगर हमने किसी दिन इतनी जोर जबरदस्ती करके आदमी को समान भी बना लिया, तो वह करीब-करीब लोहे की जैकिट में बंद आदमी हो जाएगा। वैसे आदमी की सारी प्रफुल्लता, सारा आनंद, सारी खुशी, जीने का सारा रस छिन जाएगा। इसलिए मैंने कहा कि वह चींटियों का एक समाज हो सकता है। शायद चींटियां कभी समाजवाद पर पहुंच गई हैं। और उन्होंने एक व्यवस्था पैदा कर ली जो समता की है, लेकिन स्वतंत्रता की नहीं है।

     - ओशो 

    No comments