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    संग्रह की प्रवृत्ति में से दान नहीं हो सकता - ओशो

     

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     संग्रह की प्रवृत्ति में से दान नहीं हो सकता - ओशो 


    संपत्ति को इकट्ठा करना इतना बड़ा पाप है, बहुत गहरे में, बहुत जड़ में कि दान से कोई पुण्य नहीं हो सकता। कोई कितना ही दानवीर कहे, धोखे में मत आ जाना, वे सब दान खींचने की तरकीबें हैं। वह दानवीर कहना और प्रशंसा देना कि बहुत बड़े दानवीर हैं, ऐसा है, वैसा है। इतना दान किया, उतना दान किया, वे सब दान खींचने की तरकीबें हैं। वे आपका खीसा खाली करने की तरकीबें हैं। लेकिन इस भ्रम में मत पड़ जाना कि आपसे दान हो जाए। आपकी सारी प्रवृत्ति संग्रह की है। उस संग्रह की प्रवृत्ति में से दान हो ही नहीं सकता और अगर होगा तो उसमें कोई न कोई आगे संग्रह करने का भाव होगा कि चलो कुछ दो, कहीं भगवान हो तो थोड़ा खयाल रखेगा।

    कहीं स्वर्ग हो तो जरा छोटी स्टूल न मिलेगी, जरा बड़ी कुर्सी मिलेगी। कोई न कोई भाव पीछे होगा, कोई न कोई भीतर बात होगी, क्योंकि यह असंभव है कि एक आदमी इधर से लोगों की हत्या करता रहे और इस तरफ अस्पताल बनवाता जाए। यह बिलकुल असंभव है। यानि यह आदमी बिलकुल गड़बड़ है, इसको पता ही नहीं कि यह क्या कर रहा है? यह हो ही नहीं सकता।

    यह बिलकुल ही असंभव बात है कि एक ही आदमी से ये दोनों बातें एक साथ होती रहें, इनमें से एक बात झूठी होगी, एक बात सच्ची नहीं हो सकती वह केवल आवरण होगी। लेकिन हम यह धोखा खाते रहते हैं, अपने को देते रहते हैं, देते रहते हैं इसलिए कि हमें थोड़ी सुविधा हो जाती है। कोई आदमी अपने को पापी नहीं मानना चाहता । पापी मानने में बड़ी आत्मग्लानि होती है। तो थोड़ा-बहुत काम ऐसा कर लिया जिसको लोग पुण्य कहते हैं। तो आत्मग्लानि से बचना हो जाता है। आत्मग्लानि बच जाती है, थोड़ा ऐसा लगता है कि अगर हम भी तो कुछ तो पुण्य करते ही हैं कोई फिकर नहीं, थोड़ा करते हैं तो कुछ तो करते हैं। फिर धीरे-धीरे बढ़ेंगे, ऐसा धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते ज्यादा पुण्य कर लेंगे।

    तो अपनी आंखों में अपनी तस्वीर को, बिलकुल अंधकारपूर्ण, अंधेरी पुती हुई कोई नहीं देखना चाहता। सोचते हैं थोड़ा-बहुत तो सफेद रंग दिखाई पड़े, तो वह सफेद रंग दिखाने के लिए थोड़ा-बहुत करते हैं । उसको हम पुण्य कहते हैं। यह सब झूठी बात है। वहां हमारा चित्त का जब तक आमूल - क्रांति न हो, तब तक कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। तो या तो पाप होता है या पुण्य होता है। पाप और पुण्य साथ-साथ किसी व्यक्ति से नहीं हो सकते।

     - ओशो 

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