कुंडलिनी-ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन - ओशो
कुंडलिनी-ऊर्जा काऊर्ध्वगमन - ओशो
शरीर में विद्युत-ऊर्जा जैसा संचार शुभ है। धीरे-धीरे शरीर-भाव मिट जाएगा और ऊर्जा का बोध ही बचेगा। भौतिक (मैटेरियल) शरीर एक भ्रांति है। वस्तुतः तो है, वह ऊर्जा (एनर्जी) ही है। ऊर्जा (लाइफ एनर्जी) ही अज्ञान में शरीर और ज्ञान में आत्मा प्रतीत होती है। मस्तिष्क में धक्के लगेंगे। लगेगा कि जैसे अब फटा अब फटा। लेकिन भय न लाना। जीवन-ऊर्जा के हाथों में स्वयं को छोड़ दो। वही भगवत-समर्पण है। ऐसे ही ब्रह्मरंध्र को छोड़ दो। ऐसे ही सहस्र पंखुड़ियों वाले कमल की कली टूटेगी और फूल बनेगी। नाभि-केंद्र पर अपूर्व शांति का जो अनुभव हो रहा है, उसमें रमण करो। उसमें डूबो—उससे एक हो जाओ। जीवन-ऊर्जा का मूल-स्रोत ध्यान में आ रहा है—उसे पहचानो। और, अब किसी भी अनुभव के संबंध में सोच-विचार मत करो! अनुभव करो और अनुगृहीत होओ।
- ओशो
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