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    साक्षीभाव का अर्थ - ओशो

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    साक्षीभाव का अर्थ - ओशो 


    साक्षीभाव का अर्थ हैः उस बिंदु का हमें क्रमशः उसका स्मरण आता जाए, उसकी रिमेंबरिंग आती जाए, उसका होश आता जाए। जैसे-जैसे उसका होश हमें आता जाएगा, जैसे-जैसे उस बिंदु में जागरण होता जाएगा, स्फुरणा होती जाएगी, बिंदु टूटने लगेगा, उसके ऊपर के आवरण हटने लगेंगे। आप पाएंगे कि आप प्रत्येक क्रिया के साक्षी हैं। यहां तक कि निद्रा के भी। जब आप सो जाएंगे तब भी आपके भीतर एक बिंदु अभी भी जागता रहता है। कभी आपने खयाल किया ? आप सोए हैं, आपका नाम राम हैं। रास्ते पर कोई विष्णु विष्णु चिल्ला रहा, आपको पता नहीं चलेगा। लेकिन किसी ने कहा- राम, आप उठ कर बैठ जाएंगे। नींद में भी कोई सुन रहा है कि आपका नाम क्या है?

    दूसरे का नाम कोई बुलाता रहे, आप सोए रहेंगे। आपका कोई नाम बुला दे, आप नींद में भी उठ आएंगे। मां अपने बच्चे को लेकर सोती है— बाहर इंजन चलते रहें, कारें चलती रहें लेकिन बच्चा जरा ही रोया, जरा ही सरका और मां उसे सम्हाल लेती है। कोई भीतर बोध को पकड़े हुए है। कभी रात में आप कह कर सो जाएं अपना ही नाम लेकर, आपका नाम राम है तो कह कर सो जाएं कि राम ठीक पांच बजे उठ आना। तो आप हैरान हो जाएंगे, ठीक पांच बजे आपकी नींद टूट जाएगी। कोई आपके भीतर है जो जागा हुआ है, जो पांच बजे आपको उठा देगा।

    आप तो हैरान होंगे, हिप्नोसिस और सम्मोहन के प्रयोगों ने बड़ी अदभुत बातें सिद्ध की हैं। अगर किसी व्यक्ति को सम्मोहित करके मूर्च्छित कर दिया जाए और उससे कह दिया जाए कि सत्रह हजार मिनट बाद तुम ऐसा ऐसा काम करना। इसके बाद उसे होश में ला दिया जाए, उसे कुछ भी याद नहीं रहेगा। अब सत्रह हजार मिनट अगर आपसे कह दिया जाए तो आप होश में भी सत्रह हजार मिनट नहीं गिन सकते कि कब यह वक्त आएगा। उसको तो बेहोशी में कहा गया, होश में आने को उसे कुछ पता भी नहीं है । लेकिन ठीक सत्रह हजार मिनट बाद वही काम वह व्यक्ति कर लेगा । उसके भीतर कोई जागा हुआ है, जो मिनट मिनट का भी हिसाब, जिसका उसे होश है।

    हमारे भीतर किसी बिंदु पर बड़ा साक्षी बिंदु है। और इसीलिए जिसका साक्षी जाग्रत हो जाता है वह रात में सोता भी है और नहीं भी सोता है। उसके भीतर एक बोध बना रहता है। शरीर सोता है, उसके भीतर कोई जागा रहता है।

     - ओशो 

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