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    जिसके भीतर आनंद होगा वही केवल प्रेम दे सकता है - ओशो

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    जिसके भीतर आनंद होगा वही केवल प्रेम दे सकता है - ओशो 


    इस जमीन पर एक प्रेमी दूसरे प्रेमी से मांगता है मुझे आनंद दे दो, इसको सोचते ही नहीं कि उसके पास आनंद अगर होता, तो वह तुम्हारे पास भिक्षापात्र लेकर खुद ही क्यों आता ! जिसके पास आनंद है वह किसी से आनंद नहीं मांगेगा। अगर आप किसी से भी आनंद मांग रहे हैं आपके पास आनंद नहीं है। जिससे आप मांग रहे हैं वह भी आपसे मांगने आया हुआ है। दोनों इस भ्रम में हैं कि दूसरे से हमें मिलेगा, इसलिए प्रेम में फ्रस्ट्रेशन पैदा होता है। प्रेम में दिक्कत पैदा होती है, असफलता पैदा होती है । थोड़े दिनों में पता लगता है कि प्रेमी हमें प्रेम नहीं दे रहा।

    देगा क्या? प्रेम तो आनंद का प्रकाशन है; जिसके भीतर आनंद होगा वही केवल प्रेम दे सकता है।

    तो स्मरण रखें, अगर आप दूसरे से प्रेम मांगते हैं तो आप दुखी हैं और आप प्रेम देने में असमर्थ होंगे। अगर आप भीतर आनंदित हों तो आप प्रेम देने में समर्थ हो जाएंगे। आनंद का दान प्रेम है और दुख का दान प्रेम का मांगना है। जहां मांग है वहां भीतर दुख है। जहां दान है वहां भीतर आनंद है। तो जब तक आपके भीतर आनंद नहीं है, तब तक आप प्रेम कर ही नहीं सकते। अगर थोड़ा-बहुत आनंद होगा, तो लोगों को थोड़ा-बहुत प्रेम कर पाएंगे। जिस मात्रा में आनंद बढ़ेगा, प्रेम बढ़ेगा। जिस दिन आनंद पूर्ण हो जाएगा, उस दिन प्रेम पूर्ण हो जाएगा। आनंद की परिपूर्णता पर जीवन में प्रेम उत्पन्न होता है। उसी प्रेम की परिपूर्णता का नाम प्रार्थना है। वही टू बी इन प्रेयर । वही प्रार्थना में होना है। फिर चौबीस घंटे जीवन से प्रेम बरसने लगता है।

    उठते, बैठते, चलते, चारों तरफ प्रेम झलकने लगता है। भीतर आनंद होता है, तो उसकी ज्योति बाहर फैलती है। ज्योति, आनंद की ज्योति का नाम प्रेम है। भीतर आनंद का दीया जलेगा, तो बाहर प्रकाश फैलेगा प्रेम का । फिर वह प्रेम किसी से संबंधित नहीं होता। जो प्रेम किसी से संबंधित नहीं उसका नाम प्रार्थना है। जो प्रेम किसी से संबंधित हो जाए वह प्रेम नहीं है। जो प्रेम किसी से संबंधित नहीं होता, अनंत के प्रति, सर्व के प्रति प्रवाहित होता है वही प्रार्थना है, वही परमात्मा के प्रति प्रार्थना है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है । समस्त, सर्व, टोटेलिटी, यह जो सब है यही परमात्मा है।

     - ओशो 

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