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    प्रेम केवल चेष्ठा हैं अपने को किसी में भुलाने की - ओशो

     

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     प्रेम केवल चेष्ठा हैं अपने को किसी में भुलाने की - ओशो 


    हम अपने को किसी व्यक्ति में भुलाने में जब समर्थ हो जाते हैं, वह व्यक्ति हमें जरूरी हो जाता है। हम चाहते हैं वह सुरक्षित रहे। नष्ट न हो जाए, मर न जाए। अगर आपका कोई प्रेमी मर जाता है तो आपको जो दुख होता है, इस खयाल में मत रहना कि वह उसके मरने से होता है। वह दुख इसलिए होता है कि आप उसमें अपने को भूले रखते थे अब क्या करेंगे? अब आप किसी में भूल नहीं सकेंगे अपने को | अब आप घबड़ा गए। आपकी एक एस्केप खो गई, आपका एक पलायन का स्थल था, एक व्यक्ति था, जिसमें आप अपने को डुबाते थे, भूलते थे वह नष्ट हो गया। अब आप क्या करेंगे?

    प्रेमी जो आत्मघात कर लेते हैं प्रेमियों के मरने पर, वह इसीलिए कि अब उन्हें जीवन में कोई अर्थ नहीं दिखाई देता । क्योंकि जिसमें भूलते थे वही उनका जीवन था। यह कोई प्रेम नहीं है, ये सब मूर्च्छाएं हैं। ये सब चेष्टाएं हैं अपने को किसी में भुलाने की। और यही वजह है कि जिस व्यक्ति को आज आप प्रेम करते हैं, चार-छह महीने बाद पाएंगे कि अब उससे आपका प्रेम नहीं लग रहा है। किसी और की तरफ आपकी दृष्टि चली गई। क्योंकि जिसके आप आदी हो जाते हैं उसमें अपने को भुलाना मुश्किल हो जाता है। अब आप दूसरे व्यक्ति को खोजते हैं। दूसरे के साथ भी यही होगा, तीसरे को खोजेंगे तीसरे के साथ भी यही होगा, चौथे को खोजेंगे...। जिस-जिस को आप अपने को भुलाने को खोजेंगे, थोड़े दिन तरकीब काम करेगी नये-नये, फिर वह तरकीब काम नहीं करेगी, आप आदी हो जाएंगे, आप परिचित हो जाएंगे।

    यह सब प्रेम नहीं है। और इस सारे प्रेम में हम अधिकार करना चाहते हैं उस व्यक्ति पर जिससे हम प्रेम करते हैं । सारा प्रेम पजेस करना चाहता है। हम मालिक हो जाना चाहते हैं उसके जिसको हम प्रेम करते हैं। क्यों? क्योंकि हमें डर है कहीं वह छिटक न जाए, कहीं वह किसी और के प्रेम के चक्कर में न पड़ जाए। नहीं तो हमारा क्या होगा ? हम क्या करेंगे?

    हमें अपने में तो कोई सुख नहीं मालूम होता, दूसरे व्यक्ति से मांगते कि हमें सुख दे दो। सारे प्रेमी एक-दूसरे से सुख मांगते हैं। मुझे दिखाई पड़ता है यह ऐसा ही है कि एक दुनिया हो जिसमें सब भिखमंगे हों और सब अपने भिक्षापात्र लि एक-दूसरे के सामने खड़े हों कि हमें कुछ दे दो। तो दूसरा भी भिखमंगा है वह भी भिक्षापात्र लिए हुए खड़ा हुआ है।

     - ओशो 

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