निर्विचार हो जाने पर मन की परिस्थिति - ओशो
निर्विचार हो जाने पर मन की परिस्थिति - ओशो
साक्षीभाव से मन को देखने से जब मन निर्विचार हो जाता है, उसके बाद क्या परिस्थिति होती है?
परिस्थिति? परिस्थिति वहां कहां? बस, सब परिस्थितियां मिट जाती हैं, और वही शेष रह जाता है जो है। और जो है, वह सदा से है। परिस्थिति प्रतिपल बदलती है, वह कभी नहीं बदलता है। परिस्थिति परिवर्तन है, और वह सनातन। परिस्थिति में सुख है, दुख है। सुख दुख में बदलता है, दुख सुख में बदलता है। बदलता है, तो और कोई राह भी नहीं है। और वहां न सुख है न दुख है, क्योंकि वहां परिवर्तन नहीं है। फिर वहां जो है उसी का नाम आनंद है।
ध्यान रहे कि आनंद सुख नहीं है। क्योंकि सुख वही है, जो दुख में बदल सकता है। और आनंद दुख में नहीं बदलता है। आनंद बदलता ही नहीं है। इसीलिए आनंद से विपरीत कोई स्थिति नहीं है, आनंद अकेला है। आनंद अद्वैत ऐसे ही, परिस्थिति में ही जन्म है, मृत्यु है। जहां जन्म है, वहां मृत्यु होगी ही। वे एक ही पेंडुलम की दो परिवर्तन स्थितियां हैं। जन्म मृत्यु बनता रहा है। फिर मृत्यु जन्म बनती रहती है। परिस्थिति इसी चक्र का नाम है। और वहां—सत्य में—न जन्म है, न मृत्यु।
कहें कि वहां जीवन है। जन्म की उलटी परिस्थिति मृत्यु है। जीवन से उलटा कुछ भी नहीं है। वहां जीवन है, जीवन है, और जीवन है। रस, आनंद, जीवन का नाम ही ब्रह्म है।
- ओशो
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