• Latest Posts

    मन जीता है तनाव में और सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है - ओशो

    The-mind-lives-in-tension-and-all-tension-is-a-tension-to-reach-somewhere-deep-down-Osho
     


    मन जीता है तनाव में और सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है - ओशो 


    मन जीता है तनाव में और सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है— चाहे वह धन, चाहे यश, चाहे धर्म, चाहे मोक्ष। मन मरा उसी वक्त, जिस वक्त आपने कहा, कहीं नहीं जाना, जाना ही नहीं है कहीं। तो मन के अस्तित्व की सारी आधारशिला हट गई। और जब तक आप कहीं जाने में लगे हैं, तब तक एक बात पक्की है कि अपने को जानने में नहीं लग सकते। क्योंकि यह दूर ले जाने वाला मन पास नहीं आने देता। और यह दूर ले जाने वाला मन इतना कुशल है कि फिर अगर दूर आप चले जाएं, तो यह कहता है कि पास जाने के लिए भी कोई रास्ता चाहिए।

    इसलिए एक आदमी यहां सोया रात और उसने सपने में देखा कि वह कलकत्ता चला गया है, तो वह किसी रास्ते से लौट आना पड़ेगा उसे कलकत्ते से यहां वापस ? वह गया ही नहीं है, क्योंकि सच बात यह है कि हम जहां हैं वहां से वस्तुतः हम जा ही कैसे सकते हैं? जो हम हैं उससे अन्यथा हम हो कैसे सकते हैं? हम वहीं हैं, सिर्फ हमारा मन चल गया है, सिर्फ कामना चली गई है। मन भी क्या जाएगा, कामना चली गई है, डिजायर चली गई है दूर, हम वहीं खड़े हैं। सवाल कुल इतना है कि जहां हम खड़े हैं, वहीं हम अपनी सारी डिजायर को, सारे विचार को, सारी कामना को वहीं रोक लें जहां हम खड़े हैं, तो जो हम हैं वह हमें पता चल जाए ।

    तो एक तो यह समझ में नहीं आता साधारणतः क्योंकि जीवन का सारा अनुभव यह कहता है कि मंजिल दूर है और आत्मिक अनुभव की बात बिलकुल उलटी है कि मंजिल दूर बिलकुल नहीं है, बिलकुल ही पास है। पास भी नहीं है, तुम ही हो मंजिल। तो जो मंजिल दूर हो उसको जोड़ने के लिए रास्ता चाहिए, विधि चाहिए, मेथड चाहिए, टेक्नीक चाहिए और समय चाहिए। आज तो हो ही नहीं सकता वह, अभी तो हो नहीं सकता, कभी होगा । फिर गुरु चाहिए, फिर बताने वाला गाइड चाहिए, क्योंकि मंजिल आगे है, भविष्य अंधकारपूर्ण है, हम वहां गए नहीं हैं कभी । तो कोई चाहिए जो बताए ।

    भविष्य में मंजिल है तो फिर गुरु अनिवार्य है, शास्त्र अनिवार्य है। गाइड होगा, व्यवस्था होगी, विधि होगी, टेक्नीक होगी। लेकिन मजे की बात यह है कि मंजिल यहीं है, अभी, इसी वक्त । कहीं जाना नहीं है खोजने, सिर्फ ठहर जाना है। और ठहर वह जाएगा जो खोज बंद कर दे, क्योंकि खोजने वाला मन ठहर कैसे सकता है? वह खोज रहा है, खोज रहा है।

    नहीं खोज रहे हैं आप, नो- सीकिंग की एक हालत है। कुछ भी नहीं खोजना है, बस हैं। तो इस क्षण में होगा क्या ? इस क्षण में जब आप कहीं दूर नहीं होंगे, तो चेतना वहीं होगी जहां है। और यहां उदघाटन एक्सप्लोजन होगा।

    सभी विधियां इस बात को मान कर चलती है कि आप कहीं चले गए हैं या कहीं आपको जाना है। तो विधि मात्र की जो भूल है, वह हमारे जाने वाले मन में लगी हुई है । और जब विधि सीखेंगे तो फिर गुरु चाहिए । फिर सब आएगा पीछे से—सारी गुरुडम आएगी, आश्रम आएगा, संप्रदाय आएगा, अनुयायी आएंगे, वह सब आएगा।

     - ओशो 

    No comments