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    सूफी दरवेश नृत्य - ओशो

    Sufi-Dervish-Dance-Osho


     सूफी दरवेश नृत्य - ओशो 

    यह एक प्राचीन सूफी विधि है, जो हमें चैतन्य साक्षी में केंद्रित करती है। इस विधि की शांत, मद्धम, संगीतपूर्ण लयबद्ध स्वप्निलता हमें अपने आत्म-स्रोत को अनुभव करने में विशेष सहयोगी है।

    लंबे समय तक शरीर के गोल घूमने से चेतना का तादात्म्य शरीर से टूट जाता है— शरीर तो घूमता रहता है, परंतु भीतर एक अकंप, अचल चैतन्य का बोध स्पष्ट होता चला जाता है।

    इस प्रयोग को शुरू करने से तीन घंटे पूर्व तक किसी भी प्रकार का आहार या पेय नहीं लेना चाहिए, ताकि पेट हल्का और खाली हो।

    शरीर पर ढीले वस्त्र रहें, तथा पैर में जूते या चप्पल न हों तो ज्यादा अच्छा है। इसके लिए समय का कोई बंधन नहीं है, आप घंटों इसे कर सकते हैं। सूर्यास्त के पहले का समय इस प्रयोग के लिए सर्वोत्तम है। यह केवल दो चरणों का ध्यान है। पहला चरण

    अपनी जगह बना लें जहां आपको घूमना है। आंखें खुली रहेंगी। अब दाहिने हाथ को ऊपर उठा लें-कंधों के बराबर ऊंचाई तक, और उसकी खुली हथेली को आकाशोन्मुख रखें।

    फिर बाएं हाथ को उठाकर नीचे इस तरह से झुका लें कि हथेली जमीन की ओर उन्मुख रहे। दायीं हथेली से ऊर्जा आकाश से ली जाएगी और बायीं हथेली से पृथ्वी को लौटा दी जाएगी।

    अब इसी मुद्रा में एंटि-क्लॉकवाइज़-याने दाएं से बाएं—लट्ट की तरह गोल घूमना शुरू करें। यदि एंटि-क्लॉकवाइज़ घूमने में कठिनाई महसूस हो, तो क्लॉकवाइज़—याने बाएं से दाएं-घूमें। घूमते समय शरीर और हाथ ढीले हों—तने हुए न हो। धीमे-धीमे शुरू कर गति को लगातार बढ़ाते जाएं—जब तक कि गति आपको पूरा ही न पकड़ ले। ___ गति के बढ़ाने से चारों ओर की वस्तुएं और पूरा दृश्य अस्पष्ट होने लगेगा, तब आंखों से उन्हें पहचानना छोड़ दें,

    और उन्हें और अधिक अस्पष्ट होने में सहयोग दें। वस्तुओं, वृक्षों और व्यक्तियों की जगह एक प्रारंभहीन और अंतहीन गोला-प्रवाह-मात्र रह जाए। ____ घूमते समय ऐसा अनुभव करें कि पूरी घटना का केंद्र नाभि है और सब कुछ नाभि के चारों ओर हो रहा है। इसमें किसी प्रकार की आवाज या भावावेगों का रेचन, कैथार्सिस न करें। जब आपको लगे कि अब आप और नहीं घूम सकते, तो इतनी तेजी से घूमें कि आपका शरीर और आगे घूमने में असमर्थ होकर आप ही आप जमीन पर गिर पड़े।

    याद रहे, भूलकर भी व्यवस्था से न गिरें। यदि आपका शरीर ढीला होगा, तो जमीन पर गिरना भी हल्के से हो जाएगा और किसी प्रकार की चोट नहीं लगेगी। मन का कहना मानकर शरीर को समय से पहले न गिरने दें।

    दूसरा चरण

    गिरते ही पेट के बल लेट जाएं, ताकि आपकी खुली हुई नाभि का स्पर्श पृथ्वी से हो सके। यदि पेट के बल लेटने में अड़चन होती हो, तो पीठ के बल लेटें। पूरे शरीर का—नाभि सहित—पृथ्वी से स्पर्श होने दें। पृथ्वी से एक छोटे बच्चे की भांति चिपक जाएं और उन दिनों की अनुभूतियों की पुनरुज्जीवित कर लें, जब आप छोटी उम्र में अपनी मां की छाती से चिपके रहा करते थे। अब आंखें बंद कर लें, और शांत और शून्य होकर इस स्थिति में कम से कम पंद्रह मिनट तक पड़े रहें। अनुभव करें कि नाभि के माध्यम से आप पृथ्वी से एक हो गए हैं—व्यक्ति विसर्जित हो गया है विराट में; व्यक्ति मिट गया है और समष्टि ही रह गयी है।

    - ओशो 

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